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महाभारत काल से जुड़ा है श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का रहस्य, इस पौराणिक वीडियो में जाने इसकी उत्पत्ति गाथा 

महाभारत काल से जुड़ा है श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का रहस्य, इस पौराणिक वीडियो में जाने इसकी उत्पत्ति गाथा 

हिंदू धर्म में श्री गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश वंदना से ही की जाती है। उनका नाम स्मरण करते ही विघ्नों का नाश होता है और कार्य में सफलता मिलती है। ऐसे में श्री गणपति से जुड़े स्तोत्रों का भी विशेष महत्त्व है, जिनमें "श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम्" का स्थान बेहद खास माना जाता है। कहा जाता है कि यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, बल्कि मनोकामना पूर्ति में भी अद्भुत प्रभावशाली है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस स्तोत्र की उत्पत्ति महाभारत काल से जुड़ी हुई है? इस पौराणिक स्तोत्र के पीछे एक रहस्यमयी कथा छिपी है, जो इसे और भी अद्भुत और दिव्य बना देती है।


महाभारत काल से है इसका संबंध
श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति का सीधा संबंध महाभारत काल से बताया जाता है। जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना का संकल्प लिया, तब उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो उनकी वाणी को उसी क्षण लिपिबद्ध कर सके। उस समय श्री ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान श्री गणेश की शरण में जाने का सुझाव दिया।वेदव्यास जी ने भगवान गणेश का ध्यान किया और उनसे आग्रह किया कि वे उनकी वाणी को लिखें। श्री गणेश ने शर्त रखी कि वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक वेदव्यास बोलते रहेंगे — यदि वे रुके, तो वे लिखना भी बंद कर देंगे। इसके बदले वेदव्यास जी ने भी एक शर्त रखी कि गणेश जी वही श्लोक लिखेंगे, जिसका अर्थ वे पहले समझ लेंगे। इस प्रकार, महाभारत की रचना का आरंभ हुआ।

श्रीकृष्ण ने बताया था यह स्तोत्र
मान्यता है कि जब युद्ध प्रारंभ होने वाला था, तब युधिष्ठिर और अर्जुन अत्यंत चिंतित थे। तभी भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् सुनाया और कहा कि यदि युद्ध से पूर्व इसका श्रद्धा पूर्वक पाठ किया जाए, तो सभी विघ्न दूर होंगे और विजय निश्चित होगी। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के 12 दिव्य नामों का उल्लेख है, जिनका जप करने मात्र से ही व्यक्ति की समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं।

रहस्यमयी प्रभाव और लाभ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का प्रतिदिन पाठ करने से जीवन में आ रहे अनावश्यक विघ्न समाप्त होते हैं। यह स्तोत्र छात्रों, व्यापारी वर्ग, नौकरीपेशा और गृहस्थ जीवन में रहने वाले हर किसी के लिए कल्याणकारी होता है। इसका प्रयोग विशेषकर किसी कार्य की शुरुआत से पहले किया जाता है, जिससे कार्य बिना किसी रुकावट के पूर्ण हो सके।

आज भी है प्रासंगिकता
भले ही इस स्तोत्र की उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले महाभारत काल में हुई हो, लेकिन आज भी इसका महत्त्व उतना ही है। गणेश चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी, बुधवार के दिन या किसी विशेष कार्य आरंभ करने से पूर्व इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है। यही कारण है कि यह स्तोत्र सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक शक्तिशाली आध्यात्मिक साधन बन चुका है।

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