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शिव पंचाक्षर स्तोत्र में छिपा है दिव्यता का सूत्र, 3 मिनट के इस पौराणिक वीडियो में जानिए कैसे मंत्रों और अक्षरों में समाया है सृष्टि का रहस्य

शिव पंचाक्षर स्तोत्र में छिपा है दिव्यता का सूत्र, 3 मिनट के इस पौराणिक वीडियो में जानिए कैसे मंत्रों और अक्षरों में समाया है सृष्टि का रहस्य

सनातन धर्म में भगवान शिव को संहार के देवता के रूप में जाना जाता है, लेकिन वे केवल विनाश नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण, शांति, तपस्या और अध्यात्म के अधिपति भी हैं। भगवान शिव की आराधना जितनी सरल है, उतनी ही प्रभावशाली भी है। उनकी भक्ति में न मंत्रों की अधिकता है और न किसी दिखावे की आवश्यकता। केवल एक मंत्र – "ॐ नमः शिवाय" – में ही शिव की संपूर्ण शक्ति समाहित है। यही कारण है कि इसे "शिव का पञ्चाक्षरी मंत्र" कहा गया है, जिसका अर्थ है – पाँच अक्षरों से युक्त दिव्य और शक्तिशाली मंत्र।इस मंत्र के साथ-साथ "शिव पंचाक्षर स्तोत्र" भी शिवभक्तों के बीच अत्यंत प्रसिद्ध है। इसमें शिव के विभिन्न स्वरूपों का उल्लेख करते हुए भक्ति और शक्ति का अद्भुत समन्वय किया गया है। आइए, जानते हैं कि इस मंत्र और स्तोत्र का आध्यात्मिक रहस्य क्या है और क्यों इनका जप करने से जीवन की नकारात्मकता दूर होती है।


क्या है पंचाक्षरी मंत्र – "ॐ नमः शिवाय"?
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र में पाँच अक्षर होते हैं – न, म, शि, वा, य। यही कारण है कि इसे पंचाक्षरी मंत्र कहा गया है। इस मंत्र में "ॐ" बीज मंत्र है जो ब्रह्मांड की मूल ध्वनि मानी जाती है। बाकी के पाँच अक्षर शिव के पंचतत्व स्वरूप को दर्शाते हैं।

न – पृथ्वी तत्व
म – जल तत्व
शि – अग्नि तत्व
वा – वायु तत्व
य – आकाश तत्व

इन पाँचों तत्वों से ही संपूर्ण सृष्टि बनी है, और शिव स्वयं इनका आधार हैं। जब कोई श्रद्धा और समर्पण भाव से "ॐ नमः शिवाय" का जाप करता है, तो वह अपने शरीर और मन के इन पाँचों तत्वों को शुद्ध करता है और शिव से एकाकार हो जाता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र: क्या है इसका महत्व?
"शिव पंचाक्षर स्तोत्र" आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक स्तोत्र है जो भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इसमें हर श्लोक पंचाक्षरी मंत्र के एक अक्षर को समर्पित है और शिव के एक विशेष रूप की स्तुति करता है। यह स्तोत्र केवल भक्ति नहीं बल्कि ध्यान, साधना और आत्मसाक्षात्कार का भी माध्यम है।

इस स्तोत्र के पांच प्रमुख श्लोक हैं, जो इस प्रकार से पंचाक्षरों को समर्पित हैं:
"न" – नन्दीश्वरप्रियं नन्दनं, शंभोरात्मसमं शिवम्
"म" – मन्दारपुष्पसङ्काशं, मत्तवारणसेवितम्
"शि" – शितिकण्ठं कपर्दिनं, शूलपाणिं त्रिलोचनम्
"वा" – वागीशवन्द्यं वेदान्तवेद्यम, शिवं शिवानन्दम्
"य" – यज्ञेशं यज्ञनाथं, यज्ञभागं शिवप्रियं

इन श्लोकों का पाठ करते समय साधक शिव के स्वरूप, शक्ति और अनंतता का अनुभव करता है। यह न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना को भी जाग्रत करता है।

पंचाक्षरी मंत्र और स्तोत्र का जाप कब और कैसे करें?
समय: सुबह ब्रह्ममुहूर्त में या संध्याकाल में इनका जाप अत्यंत शुभ माना गया है।
स्थान: किसी शांत स्थान, मंदिर, या घर में पूजा स्थल पर बैठकर जाप करें।
माला: रुद्राक्ष की माला से 108 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
श्रद्धा: सबसे जरूरी है – पूर्ण श्रद्धा और समर्पण। बिना भाव के जप निरर्थक होता है।

आध्यात्मिक लाभ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
"ॐ नमः शिवाय" का निरंतर जाप मन को एकाग्र करता है, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद से राहत मिलती है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि नियमित मंत्र जाप से मानसिक तरंगें संतुलित होती हैं और मस्तिष्क शांति अनुभव करता है। यह शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ भी व्यक्ति की आभा (Aura) को मजबूत करता है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं और जीवन में सुख-शांति का प्रवाह बढ़ता है।

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