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Shivratri 2025: क्यों भगवान शिव ने गणेश जी के साथ तोड़ा था कुबेर का घमंड, युगों तक धन के देवता ने झेली थी दुर्गति

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कुबेर ने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया और उसमें उन्होंने तीनों लोकों के सभी देवताओं के साथ भगवान शिव को भी सपरिवार भोज में आमंत्रित किया। भगवान शिव, कुबेर के मन का अहंकार जान गए थे। इसलिए, उन्होंने कुबेर से कहा कि मैं बूढ़ा हो चला हूँ और कहीं बाहर नहीं जाता। लेकिन कुबेर उनसे प्रार्थना करते हुए आने के लिए विवश करने लगे। तब शिव जी ने कुबेर से कहा कि मैं तो नहीं आ सकता लेकिन मैं अपने छोटे बेटे गणपति को तुम्हारे भोज में जाने को कह दूंगा। कुबेर संतुष्ट होकर लौट आए।

कुबेर के भोज में तीनों लोकों के देवता पहुंचे और अंत में गणपति जी आए। आते ही उन्होंने कहा कि उन्हें तेज भूख लगी है, तो भोजन लाकर दे। कुबेर के आदेश पर सोने की थाली में भोजन परोसा गया। क्षण भर में ही परोसा गया सारा भोजन खत्म हो गया। गणेश जी को बार-बार भोजन परोसा गया लेकिन क्षण भर में गणेश जी उसे चट कर जाते। थोड़ी ही देर में हजारों लोगों का भोजन खत्म हो गया, लेकिन गणेशजी का पेट नहीं भरा। वे रसोईघर में पहुंचे और वहां रखा सारा कच्चा सामान भी खा गए, तब भी भूख नहीं मिटी। अब भगवान गणेश ने महल में रखी प्लेटें, कटलरी, मेज, कुर्सियाँ और अन्य सभी विलासिता की वस्तुएँ खाना शुरू कर दिया। कुबेर यह देखकर घबरा गए कि कहीं गणेशजी अब उसकी सारी संपत्ति ही न खा जाएँ।

जब गणेशजी का पेट नहीं भरा, तो उन्होंने कुबेर को क्रोधित होते हुए कहा कि जब तुम्हारे पास मुझे खिलाने के लिए कुछ था ही नहीं, तो तुमने मुझे न्योता क्यों दिया। कुबेर, गणेश जी के क्रोध को देखकर घबरा गए। उन्हें गणेश जी का पेट नहीं भर पाने के कारण बहुत शर्मिन्दगी हो रही थी। आज उनकी इतनी दौलत भी किसी काम नहीं आ रही थी। वो ना मात्र के कुबेर बनकर रह गए थे। अब गणेशजी का क्रोध उनपर ना बरस पड़े, इसलिए वो डर के मारे शिव जी के पास आए और हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए बोले कि मैं शर्मिंदा हूं और मैं समझ गया हूं कि मेरा अभिमान आपके आगे कुछ नहीं। गणेशजी का पेट भरने में मैं असमर्थ हूँ, तो कृपया कर मेरी मदद करें। तब भगवान शिव ने उन्हें मुट्ठी भर चावल दिया और कहा कि यह गणेश को खिला दो, उसकी भूख समाप्त हो जायेगी। कुबेर ने ऐसा ही किया। तब गणेश जी ने कुबेर को कहा कि धन, भूख को संतुष्ट नहीं कर सकता, अगर वह अहंकार में आकर खिलाया गया हो। यही भोजन अगर आपने प्यार और विनम्रता से कराया होता, तो आपको इतना शर्मिन्दा होना ही नहीं पड़ता।

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