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Shivratri 2025: आखिर किसकी वजह से भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच छिड़ा था प्रलयंकारी युद्ध ?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर ने शिव पुत्र कार्तिकेय की सुंदरता से मोहित होकर भगवान शिव का पुत्र बनने की इच्छा जताई। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिसके बाद शिवजी ने उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया। एक समय ऐसा आया जब बाणासुर की पुत्री उषा को श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध से प्रेम हो गया। उषा की मायावी मित्र अप्सरा चित्रलेखा ने अनिरुद्ध और उषा का गन्धर्व विवाह करा दिया। जब बाणासुर को यह बात पता चली, तो उसने अनिरुद्ध का अपहरण कर उसे अपना बंदी बना लिया। बस फिर क्या था, श्रीकृष्ण ने अपनी पूरी सेना के साथ बाणासुर की नगरी पर धावा बोल दिया।

बाणासुर, श्रीकृष्ण की नारायणी सेना से अकेले नहीं लड़ सकता था। इसलिए उसने भगवान् शिव से मदद माँगी। अब युद्ध में श्रीकृष्ण की नारायणी सेना के विरुद्ध बाणासुर की सेना के साथ भगवान शिव और कुमार कार्तिकेय भी लड़ रहे थे। युद्ध इतना भयानक था कि एक पल को लगा कि भगवान शंकर ने अग्नियास्त्र से गरूड़ पर सवार श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न मारे गए, लेकिन उसी समय श्रीकृष्ण ने वरुणास्त्र का प्रयोग कर महादेव के अग्नेयस्त्र को शांत कर दिया। फिर शिवजी के अस्त्रों के जवाब में श्रीकृष्ण ने वैष्णवास्त्र का प्रयोग किया, जिससे सम्पूर्ण जगत अंधकार में डूब गया। गुस्से में भगवान शंकर ने चार पंखावाला बाण अपने हाथ में ले लिया, तो श्रीकृष्ण ने जृंभणास्त्र उठाया। इस तरह यह युद्ध समय के साथ विकराल होता गया और इस युद्ध से समस्त सृष्टि में हाहाकार मच गया।तब ब्रह्माजी को युद्ध रोकने आना पड़ा। उन्होंने दोनों को सारी स्थिति स्पष्ट की कि किस प्रकार उनके युद्ध से संसार का विनाश हो रहा है। उनके समझाने के बाद महादेव युद्ध में पीछे हट गए लेकिन कार्तिकेय और बाणासुर, भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध करते ही रहे ।

जब श्रीकृष्ण ने बाणासुर को परास्त किया
अंत में, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में बाणासुर को पराजित करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र प्रयोग किया और उसकी मदद से बाणासुर के सहस्त्र भुजाओं को काट डाला। जैसे ही श्रीकृष्ण अपने चक्र से उसका वध करने लगे, कार्तिकेय के साथ महादेव वहां फिर से पहुंच गए, लेकिन इस बार उन्होंने युद्ध करने के बजाय श्रीकृष्ण से बाणासुर को माफ करने का अनुरोध किया।भगवान् शिव ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैंने इसे अभयदान दिया है, इसलिए अगर आप इसका वध कर देंगे, तो मेरा वचन झूठा पड़ जाएगा। शिव जी के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने बाणासुर को क्षमा कर दिया और अनिरुद्ध-उषा सहित अपनी पूरी सेना लेकर वहां से चल दिए। बाणासुर को आज भी अजर अमर माना जाता है और बाद में भगवान शिव के उसे अपने गणों में शामिल कर लिया।

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