भय, रोग, दुख और दरिद्रता से मुक्ति पाने का अमोघ साधन है शिव पंचाक्षर स्तोत्र, वीडियो में जानिए कैसे ?
सावन का पवित्र महीना शिवभक्तों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। यह वह समय होता है जब भक्तगण जलाभिषेक, व्रत, जाप और स्तोत्रों के माध्यम से भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं। इन सबमें एक स्तोत्र ऐसा भी है, जिसे भगवान शिव की परम उपासना का सर्वोत्तम साधन माना गया है—शिव पंचाक्षर स्तोत्र। इस स्तोत्र को न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक, मानसिक और यहां तक कि आयुर्वेदिक ऊर्जा संतुलन के दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। मान्यता है कि इसका नियमित जाप व्यक्ति को भय, रोग, दुख और दरिद्रता जैसे जीवन के चार बड़े संकटों से मुक्ति दिला सकता है।
सावन में जाप का विशेष महत्व
सावन भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। यह वह समय होता है जब शिव ऊर्जा धरती पर अधिक सक्रिय होती है। इस माह में किया गया शिव पंचाक्षर स्तोत्र का जाप कई गुना फलदायक माना गया है। मान्यता है कि इस स्तोत्र का प्रतिदिन सूर्योदय के समय जाप करने से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं, जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
भय और मानसिक व्याधियों से मुक्ति
आज के दौर में भय—चाहे वह आर्थिक असुरक्षा हो, भविष्य का डर हो या सामाजिक भय—हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में घेरे हुए है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित जाप मन की अशांति को दूर कर व्यक्ति को आंतरिक बल प्रदान करता है। यह स्तोत्र न सिर्फ मानसिक शांति देता है, बल्कि आत्मबल भी बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति किसी भी स्थिति में स्थिर और विवेकशील बना रहता है।
रोगों से बचाव और शारीरिक ऊर्जा का संचार
आयुर्वेद में ध्वनि कंपन और मंत्रों को शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय करने वाला माध्यम माना गया है। पंचाक्षर स्तोत्र के उच्चारण से जो ध्वनि निकलती है, वह शरीर के भीतर ऊर्जा का प्रवाह संतुलित करती है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और व्यक्ति रोगों से बचा रहता है।
दुख और दरिद्रता से मुक्ति का मार्ग
शिव को ‘अशोकदायक’ यानी दुख हरने वाला कहा गया है। पंचाक्षर स्तोत्र शिव की उसी करुणामयी शक्ति को जगाता है। यह स्तोत्र मन में सकारात्मक विचारों को स्थान देता है और निराशा, असफलता, दरिद्रता जैसे मानसिक अवरोधों को दूर करता है। जिन लोगों को लंबे समय से आर्थिक समस्याएं बनी हुई हैं, उन्हें इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक जाप जरूर करना चाहिए।
पाठ की विधि और सावधानियाँ
इस स्तोत्र का पाठ सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनकर शांत स्थान पर बैठकर करना चाहिए। ध्यान रहे कि उच्चारण स्पष्ट और एकाग्रचित्त होकर किया जाए। अगर कोई व्यक्ति इसके पूरे श्लोकों का पाठ नहीं कर सकता तो केवल “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का भी 108 बार जाप करने से समान फल प्राप्त होते हैं।

