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Sharad Purnima 2024 : 2 मिनट के इस वीडियो में जानें शरद पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

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आज यानी 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है. धार्मिक ग्रंथों में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और अपनी सभी 16 कलाओं में होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के बाद शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।

शरद पूर्णिमा को कोजोगर और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस बार पंचांग भेद और तिथियों के घटने-बढ़ने के कारण अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा दो दिन की होगी। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा तिथि, पूजा शुभ समय और महत्व।

शरद पूर्णिमा 2024 तिथि और शुभ समय
तिथियों के घटने और बढ़ने के कारण इस वर्ष शरद पूर्णिमा तिथि दो दिन यानी 16 और 17 अक्टूबर को रहेगी। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार आश्विन मास की शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर की रात करीब 8 बजे से शुरू होगी. जो 17 अक्टूबर शाम 5 बजे तक रहेगा. हालांकि शरद पूर्णिमा का त्योहार रात में ही मनाया जाता है इसलिए यह त्योहार 16 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। 17 अक्टूबर को शाम 5 बजे के बाद नया हिंदू माह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा शुरू हो जाएगा। शरद पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय शाम करीब 5 बजे रहेगा।

शरद पूर्णिमा पर रवि योग बनेगा
इस साल शरद पूर्णिमा पर रवि योग का शुभ संयोग बनेगा। वैदिक ज्योतिष में रवि योग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह रवि योग सुबह 06:23 बजे से शाम 07:18 बजे तक रहेगा.

शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान है। इस दिन खीर को खुली हवा में रखने और फिर अगले दिन सुबह उसका सेवन करने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। शास्त्रों में चंद्रमा की किरणों को अमृत माना गया है, इसलिए शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, जिसमें औषधीय गुण होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों के औषधीय गुणों से कई रोग दूर हो जाते हैं और मन प्रसन्न रहता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों से पूछती हैं कि कौन जाग रहा है। इस कारण इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर पूजा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रि में गोपियों के साथ वृन्दावन में महारास रचाया था।

पूजा एवं स्नान का महत्व |

शरद पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करता है उस पर भगवान की विशेष कृपा होती है। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। शरद पूर्णिमा के दिन सुबह सूर्य की पूजा करें और रात को चंद्रमा की पूजा करें, इसके साथ ही रात को षोडशोपचार विधि से लक्ष्मी जी की पूजा करें, श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्रोत, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें। इससे मां लक्ष्मी आपका घर धन-धान्य से भर देंगी।

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