सावन के इस पवित्र माह में हर रोज़ करे शिव पंचाक्षर का पाठ! फिर देखे महादेव स्वयं बन जाएंगे आपका रक्षा कवच, वीडियो में जाने विधि
सावन का महीना हिन्दू धर्म में विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान देशभर में श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तजन व्रत, उपवास, अभिषेक, रुद्राभिषेक और विविध स्तोत्रों का पाठ कर शिव की कृपा पाने का प्रयास करते हैं। इन्हीं स्तोत्रों में एक अत्यंत प्रभावशाली और पूज्य स्तोत्र है – शिव पंचाक्षर स्तोत्र, जिसका पाठ सावन मास में प्रतिदिन करने से भगवान शिव स्वयं अपने भक्तों की रक्षा का कवच बन जाते हैं।
पंचाक्षर स्तोत्र क्या है?
'नमः शिवाय' यह पंचाक्षर मंत्र कहलाता है, जिसमें पांच पवित्र अक्षर होते हैं – "न", "म", "शि", "वा" और "य"। इन पांच अक्षरों पर आधारित रचना को ही पंचाक्षर स्तोत्र कहा जाता है। इस स्तोत्र की रचना आदिशंकराचार्य ने की थी, जिन्होंने वेदांत और भक्ति का अद्वितीय समन्वय प्रस्तुत किया।शिव पंचाक्षर स्तोत्र की हर एक पंक्ति में भगवान शिव के स्वरूप, उनके गुणों और उनके दिव्य रूपों का वर्णन है। इसका नियमित पाठ न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि मानसिक शांति, आत्मबल और समस्याओं से मुक्ति भी दिलाता है।
सावन में इसका महत्व क्यों बढ़ जाता है?
सावन मास में शिव पूजा का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माना गया है। शिवपुराण, स्कंदपुराण और अन्य शास्त्रों के अनुसार, इस मास में की गई साधना, भक्ति और स्तोत्र-पाठ का फल सौ गुना अधिक होता है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ इस मास में करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं, रोग और शत्रु से रक्षा होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
सावन में शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करते समय इन बातों का ध्यान रखें:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
घर या मंदिर में शिवलिंग के समक्ष दीपक और धूप जलाएं।
बिल्वपत्र, जल, दूध, शहद आदि से शिवजी का अभिषेक करें।
पंचाक्षर स्तोत्र का शुद्ध उच्चारण करें और मन को एकाग्र रखें।
स्त्रोत के पांच श्लोकों का सार इस प्रकार है:
पहला श्लोक 'न' अक्षर को समर्पित है और शिव के गले में पड़े सर्प और गंगाधर रूप का गुणगान करता है।
दूसरा श्लोक 'म' अक्षर को समर्पित है, जिसमें शिव को मुक्ति का दाता बताया गया है।
तीसरे में 'शि' अक्षर का बखान है और शिव के त्रिनेत्र और नीले कंठ की महिमा गाई गई है।
'वा' अक्षर वाले श्लोक में शिव के वृषभ वाहन और उनके दयालु स्वभाव को पूजा जाता है।
अंत में 'य' अक्षर के साथ शिव की सम्पूर्ण दिव्यता को नमन किया गया है।
शिव स्वयं बन जाते हैं रक्षा कवच
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सावन माह में शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी चारों ओर एक दिव्य रक्षा कवच बन जाता है। नकारात्मक शक्तियाँ, दुर्भाग्य और शत्रुओं से बचाव होता है। मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह, आर्थिक समस्याओं और स्वास्थ्य संबंधी बाधाओं से मुक्ति मिलने लगती है।

