राहु-केतु के दुष्प्रभाव और ग्रह दोषों से मुक्ति दिलाता है श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम्, वीडियो में जानें पाठ की विधि और लाभ
भारतीय सनातन परंपरा में गणेश जी को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता के रूप में पूजा जाता है। कोई भी धार्मिक कार्य, यज्ञ, पूजा-पाठ या शुभ आरंभ हो, प्रथम स्मरण भगवान श्री गणेश का ही किया जाता है। विशेष रूप से श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् (Shri Ganpati Dwadash Naam Stotram) एक ऐसा दिव्य और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसका पाठ करने से व्यक्ति को न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जन्मपत्रिका में मौजूद ग्रह दोषों का भी शमन होता है। खासकर राहु-केतु की पीड़ा से पीड़ित व्यक्ति को इस स्तोत्र का नित्य पाठ अवश्य करना चाहिए।
क्या है श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम्?
'द्वादश' यानी बारह। यह स्तोत्र भगवान गणेश के बारह विशिष्ट नामों का वर्णन करता है। इन नामों का नियमित जाप करने से व्यक्ति के जीवन में बाधाएं दूर होती हैं, सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। इन नामों में छुपे गणेश जी के विभिन्न स्वरूपों की शक्ति है जो ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने में समर्थ मानी जाती है।
जन्मपत्रिका के दोषों को करता है शांत
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु, शनि, या मंगल जैसे ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो, तो यह व्यक्ति के जीवन में रुकावटें, मानसिक तनाव, करियर में विघ्न, वैवाहिक जीवन में कलह और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। ऐसे में श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का पाठ करने से इन दुष्प्रभावों में कमी आती है। यह स्तोत्र ग्रहों की शांति के लिए एक सशक्त उपाय माना जाता है।
विशेषकर राहु-केतु की दशा या महादशा के समय यदि यह स्तोत्र नियमित रूप से पढ़ा जाए तो व्यक्ति को मनोबल मिलता है और उसकी निर्णय क्षमता बेहतर होती है। यह उसे भ्रम, डर और मानसिक बेचैनी से बाहर निकालता है।
राहु-केतु से राहत दिलाने वाला स्तोत्र
राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है और ये जीवन में अज्ञात डर, अचानक हानि, मानसिक भ्रम और आध्यात्मिक उलझनों के कारक होते हैं। ऐसे में श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् व्यक्ति को मानसिक रूप से स्थिर बनाता है और इन छाया ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने में सहायता करता है। विशेषकर बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा कर इस स्तोत्र का पाठ करने से राहु-केतु के कुप्रभावों से काफी हद तक राहत मिलती है।
कब और कैसे करें पाठ?
इस स्तोत्र का पाठ प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर गणेश जी के समक्ष बैठकर करें।
प्रतिदिन एक शांत और पवित्र स्थान पर बैठकर 11 या 21 बार स्तोत्र का पाठ करें।
बुधवार, संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी के दिन इसका विशेष महत्व होता है।
स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान रखें कि मन एकाग्र हो और श्रद्धा पूर्ण भावना से गणपति जी का स्मरण हो।
आध्यात्मिक लाभ के साथ मानसिक शांति भी
श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का जाप सिर्फ ग्रह दोषों को ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास, साहस और सकारात्मक सोच भी उत्पन्न करता है। यह मानसिक शांति प्रदान करता है और अनावश्यक भय को दूर करता है। जो विद्यार्थी, नौकरीपेशा लोग या व्यापारी मानसिक दबाव में हैं, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभदायक है।

