Radha Ashtami: इस दिन मनाया जाएगा राधा अष्टमी, जानिए पूजा विधि और महत्व
हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों को विशेष महत्व दिया जाता हैं पंचांग के मुताबिक भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीराधाष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं यह व्रत चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी में करने का विधान होता हैं इसलिए 26 अगस्त को दिन के 1 बजकर 58 मिनट पर सप्तमी तिथि समाप्त हो रही हैं उसके बाद अष्टमी तिथि की शुरूवात हो जायेंगी।
जो 26 अगस्त को दिन के 10बजकर 28 मिनट तक ही विद्यमान रहेगी उसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। इसलिए शास्त्र मत के मुताबिक यह व्रत 26 अगस्त को पड़ रहा हैं। तो आज हम आपको इस पर्व के महत्व और पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
भगवान कृष्ण के जन्मदिन भादों कृष्णपक्ष की अष्टमी से पन्द्रह दिन बाद शुक्लपक्ष की अष्टमी को दोपहर अभिजित मुहूर्त में श्रीराधा रानी का राजा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थी। श्रीराजा बृषभानु और उनकी पत्नी श्री कीर्ति ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में पालन पोषण किया। वही ब्रह्मकल्प, वाराहकल्प और पाद्मकल्प इन तीनों कल्पों में श्रीराधा रानी जी का, कृष्ण की परम शक्ति के रूप में वर्णन किया गया हैं जिन्हें भगवान कृष्ण ने अपने वामपाश्र्व से प्रकट किया हैं। इसी कारण वेद पुराणादि में इन्हें कृष्णवल्लभा, कृष्णात्मा, कृष्णप्रिया कहा जाता हैं।
कथाओं के मुताबिक जब भगवान विष्णु का कृष्ण अवतार में जन्म लेने का समय आया तो वे अपने अनन्य भक्तों को भी पृथ्वी पर चलने का संकेत किया। तभी भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी जी, राधा के रूप में पृथ्वी पर आईं। अष्टमी को राधा पूजन आरंभ करने से पहले भगवान श्रीविष्णु को स्मरण करते हुए शारीरिक शुद्धि करें। इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ राधा रानी की पूजा अर्चना करें। इनके साथ श्री कृष्ण भगवान की भी पूजा की जा सकती हैं।

