कैसे होती है कुंभ की गणना, कितने सालों बाद पड़ता है महाकुंभ, जानिए कुंभ से जुड़ी इन खास बातों के बारे में
जयपुर। इस साल प्रयागराज कुंभ का आयोजन होने वाला है, कुंभ मेले का आयोजन 15 जनवरी से शुरु हो रहा है। प्रयागराज में आयोजित हो रहा कुंभ, एक जगह पर बारह वर्ष बाद आयोजित होने वाला कुंभ मेला है जिसमें देश और विदेश से मेहमान आ रहें हैं।

प्रयागराज कुंभ का आयोजन 15 जनवरी से हो रहा है इसके साथ ही कुंभ का समापन 4 मार्च को होगा। आज हम इस लेख में कुंभ से जुड़ी कुछ विशेष बातो के बारें में बता रहें है जिसके बारे में शायद आप लोगों को जानकारी ना हो।

शास्त्रों के अनुसार कुंभ का आयोजन 12 वर्ष में होता है। जिनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते है तो आठ कुंभ देवलोक में आयोजित किये जाते हैं। इसके साथ ही कुंभ में अर्धकुंभ, महाकुंभ कुंभ व सिंहस्थ कुंभ इनका आयोजन होता है।

शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले अमृत कलश के लिए जब देव और दानवों में युद्ध हो रहा था उस समय अमृत की चार बूंद धरती पर गिरी, जिसमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी बूंद हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी बूंद नासिक में गिरी। जिस कारण से कुंभ का आयोजन इन चार जगह पर होता है।

12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होता है कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है, कुंभ मेले का पहला स्नान साधु संन्यासी करते है जिसे शाही स्नान कहा जाता है, इसके बाद आम लोगों को कुंभ मेले में स्नान करने की अनुमति मिलती है। कुंभ मेले में दे पूरे देश से साधु संन्यासी आते हैं इनके साथ ही कुंभ मेले में नागा साधु को भी देखा जा सकता है।

