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ध्वस्त करने भेजे थे PAK सैनिक लेकिन टस से मस नहीं हुआ ये शक्तिशाली मंदिर, वीडियो में जानिए पानी वाली देवी की कहानी

ध्वस्त करने भेजे थे PAK सैनिक लेकिन टस से मस नहीं हुआ ये शक्तिशाली मंदिर, वीडियो में जानिए पानी वाली देवी की कहानी

देश-विदेश में मां जगदंबा के हर मंदिर में विशेष अनुष्ठान और पूजा-अर्चना की जाती है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर मां भवानी का मंदिर है, जिसे 'पानी वाली माता' भी कहा जाता है। देश-विदेश से श्रद्धालु नवरात्रि के 9 दिनों तक इस मंदिर में पहुंचते हैं और मां के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं। आइए जानते हैं मां जगदंबा के इस अद्भुत मंदिर के बारे में...


विभाजन के समय बसा था गडरा कस्बा
यह मंदिर बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर गडरा रोड कस्बे में बना है, जो भारत-पाकिस्तान सीमा से महज डेढ़ किलोमीटर पहले स्थित है। यह कस्बा वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय बसा था। उस समय जोधपुर से हैदराबाद के लिए ट्रेन चलती थी। गडरा कस्बा शहर की रेलवे लाइन से 3 किलोमीटर दूर था। ऐसे में गडरा रोड रेलवे स्टेशन बनाया गया, जहां ट्रेन का ठहराव होता था। विभाजन के समय गडरा शहर पाकिस्तान में आ गया था। यहां की बड़ी आबादी माहेश्वरी समुदाय की थी। माहेश्वरी समुदाय व्यापार से जुड़ा समुदाय है। गदरा सिटी, लीलमा जैसिंद्र सुंदरा और आसपास के इलाकों में घी और अनाज की मंडियां हुआ करती थीं। यहां से पाकिस्तान के छोर, अमरकोट, छाछरो और हैदराबाद तक रेल मार्ग से व्यापार होता था। लेकिन बंटवारे के बाद पूरा गांव भारत में चला गया और भारतीय सीमा में रेलवे स्टेशन के पास एक नया गांव बसा और इसका नाम गदरा रोड रखा गया।

मंदिर का स्थान मीठे पानी का भंडार है
हालांकि, यहां भी उनकी परेशानियां कम नहीं थीं। दूर रेगिस्तान और पानी के पुराने स्रोत और संसाधन पाकिस्तान में चले गए। ऐसे में पीने के पानी के बिना सीमा के इस तरफ रहना मुश्किल हो रहा था। कुछ समय तक तो उन्होंने रेलवे से पानी लेकर गुजारा किया, लेकिन रेलवे से पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा था। ऐसे में ग्रामीणों ने पानी के लिए पूजा का आयोजन किया। इस दौरान रास्ते में एक महात्मा मिले और उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि वे जिस स्थान पर कहें, वहां कुआं खोदना शुरू कर दें। यहां मीठा पानी जरूर निकलेगा। लेकिन उस पानी को पहले माता को अर्पित करना होगा। इसके बाद जब उस स्थान पर कुआं खोदा गया तो वहां मीठे पेयजल का विशाल भंडार मिला। इसके बाद गांव वालों की मां जगदंबा के इस मंदिर में विशेष आस्था हो गई। गांव वालों ने इस स्थान पर मूर्ति स्थापित कर मां जगदंबा का छोटा सा मंदिर बनवाया, जहां साल में दो बार आने वाली नवरात्रि में मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

पाकिस्तान से गिरा एक भी बम नहीं फटा
इस मंदिर के चमत्कार के बारे में गांव वाले कहते हैं कि जब पाकिस्तान से पलायन कर लोग यहां पहुंचे तो गांव के मुखिया छोगालाल भूतड़ा ने गांव वालों के साथ मिलकर मां जगदंबा की पूजा-अर्चना कर इस स्थान पर कुआं खोदा था, जहां मीठे पेयजल का विशाल भंडार मिला था। इसके बाद भारत-पाकिस्तान सीमा पर तैनात सेना के लिए पेयजल की आपूर्ति यहीं से होने लगी और यह कुआं आसपास के करीब 30-40 किलोमीटर के इलाके में लोगों की प्यास बुझाने के लिए पानी का एकमात्र स्रोत था। जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ तो पाकिस्तान ने इस स्थान को नष्ट करने के कई प्रयास किए, लेकिन मां के चमत्कार के कारण एक भी बम नहीं फटा। इसके बाद ग्रामीणों की इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ती चली गई।

माता की मूर्ति को कुएं में डाल दिया गया
आज इस गांव के लोग राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी व्यापार कर रहे हैं। लेकिन माता के प्रति आस्था इतनी गहरी है कि वे साल में एक बार इस मंदिर में जरूर आते हैं। हालांकि, वर्ष 1982 के आसपास एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति ने माता की मूर्ति को पास में बने पानी के कुएं में डाल दिया। ऐसे में ग्रामीणों का मानना ​​था कि जिस कुएं में माता की मूर्ति डाली गई है, उसे बंद कर देना चाहिए, क्योंकि जिस कुएं में माता विराजमान हैं, उसे अब खोला नहीं जाएगा। इसके बाद जलदाय विभाग ने इसके आसपास कई कुएं खुदवाए, जिनसे पानी की आपूर्ति होती थी और ग्रामीणों के सहयोग से वर्ष 1999 में यहां माता जी का भव्य मंदिर बनाया गया, जहां आज भी मां जगत जननी की पूजा होती है और ग्रामीणों ने पुराने मंदिर को भी यथावत रखा है, जहां आज भी पूजा-अर्चना होती है। 

दशरथ के चाचा ने करवाया था निर्माण इस मंदिर व गांव के संस्थापक छोगालाल भूतड़ा के भतीजे दशरथ कुमार भूतड़ा बताते हैं कि हमारे चाचा ने ही गडरा रोड गांव बसाया था और इस कुएं व मंदिर का निर्माण करवाया था। मुनाबाव, जैसिंद्रा, मापुरी, तामलोर, सज्जन का पार, लकड़ियाली समेत आसपास के कई गांवों के लोग ऊंट व बैलगाड़ी पर यहां से पानी भरकर ले जाते थे। आज भी जलदाय विभाग ने इस स्थान पर कई ट्यूबवेल बना रखे हैं, जिनसे आसपास के दर्जनों गांवों को पानी मिलता है। इनके अलावा बीएसएफ व रेलवे ने भी यहां कुएं बना रखे हैं, जो उनकी पानी की जरूरतें पूरी करते हैं।

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