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Maa Lakshmi Story: धन की देवी माँ लक्ष्मी की कैसे हुई थी उत्पत्ति, जाने क्या था उनके माता-पिता का नाम

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माँ लक्ष्मी की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है क्योंकि वो धन की देवी मानी जाती हैं। अगर माँ लक्ष्मी के स्वरूप की बात की जाए, तो मां लक्ष्मी चार हाथ हैं, जिनमें से दो में कमल है, तीसरा हाथ दान और चौथा हाथ वर मुद्रा में है। माँ लक्ष्मी कमल पर आसीन रहती हैं। माँ लक्ष्मी की कृपा का अर्थ है कि आपके जीवन में कभी भी दरिद्रता, अन्न और धन की कमी नहीं रहती। माँ लक्ष्मी की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के चलते स्वर्ग लोक लक्ष्मी विहीन हो गई थी। स्वर्गलोक का ऐश्वर्य खो जाने का लाभ उठाकर दैत्यों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में देवताओं की पराजय हुई। फिर इंद्रा ब्रह्मा जी की सलाह पर भगवान् विष्णु के पास मदद माँगने के लिए गए। उस समय भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन करने की सलाह दी। जब दैत्यों की मदद से समुद्र मंथन की गयी, तो इस मंथन से कई दिव्य वस्तुएं और रत्न निकले, जिनमें से एक माँ लक्ष्मी भी थीं। वे कमल के फूल पर विराजमान होकर प्रकट हुईं और भगवान विष्णु को उन्होंने अपना पति चुना।

एक कथा में तो समुद्र मंथन से जन्मीं लक्ष्मी का जिक्र है लेकिन दूसरी कथा में विष्णुप्रिया लक्ष्मी का जिक्र है, जिनके माता-पिता भी हैं और जिनका समुद्र मंथन से कोई लेना-देना नहीं है। इस कथा के अनुसार, माँ लक्ष्मी, भृगु ऋषि और उनकी पत्नी ख्याति की पुत्री थीं। माँ लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था और सभी गुणों से संपन्न होने के कारण उनका नाम लक्ष्मी रखा गया था। धाता और विधाता माँ लक्ष्मी के भाई हैं और अलक्ष्मी उनकी बहन। ऋषि भृगु राजा दक्ष के भाई हैं और एक सप्तर्षि भी। इस तरह से लक्ष्मी जी माता सती की बहन थीं।

माँ लक्ष्मी और विष्णु जी का विवाह लक्ष्मी जब बड़ी हुईं, तो वे भगवान नारायण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये समुद्र तट पर घोर तपस्या करने लगीं। हजारों साल तपस्या करने के बाद उनकी परीक्षा लेने के लिये देवराज इन्द्र भगवान विष्णु का रूप धारण करके लक्ष्मी देवी के पास आये और उनसे वर माँगने के लिये कहा। लक्ष्मी जी ने उनसे विश्वरूप का दर्शन कराने के लिये कहा, जो इंद्र नहीं कर सकते थे। इसलिए, इन्द्र वहाँ से लज्जित होकर लौट गये। बाद में भगवान विष्णु स्वयं पधारे और उन्हें वर माँगने के लिये कहा। उनकी प्रार्थना पर भगवान ने उन्हें विश्वरूप का दर्शन कराया और लक्ष्मी जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। बाद में एक स्वयंवर में माँ लक्ष्मी का भगवान विष्णु से विवाह हुआ और वो उनकी पत्नी बनीं और अब उनके साथ वैकुंठ में निवास करती हैं।

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