सोमवार को शिवजी के इस विशेष पाठ से बदल सकती है किस्मत, वीडियो में जाने इसके नियमित पाठ का महत्त्व और विधि
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि अगर सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाए तो वे अपने भक्तों पर अपनी कृपा जरूर बरसाते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसे में धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कई ग्रंथों और मंत्रों का जिक्र मिलता है, लेकिन रुद्राष्टकम का पाठ विशेष महत्व रखता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर भगवान भोलेनाथ की पूजा में आरती, शिव चालीसा, मंत्र के साथ रुद्राष्टकम का पाठ किया जाए तो भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं औहिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि अगर सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाए तो वे अपने भक्तों पर अपनी कृपा जरूर बरसाते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसे में धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कई ग्रंथों और मंत्रों का जिक्र मिलता है, लेकिन रुद्राष्टकम का पाठ विशेष महत्व रखता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर भगवान भोलेनाथ की पूजा में आरती, शिव चालीसा, मंत्र के साथ रुद्राष्टकम का पाठ किया जाए तो भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि पाठ को स्पष्ट रूप से पढ़ना अनिवार्य है। तो आइए जानते हैं क्या है रुद्राष्टकम का पाठ...र आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि पाठ को स्पष्ट रूप से पढ़ना अनिवार्य है। तो आइए जानते हैं क्या है रुद्राष्टकम का पाठ...
श्री शिव रुरुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

