राजा जनमेजय से कैसे बची तक्षक नाग की जान
जयपुर। महाभारत में कई सारी ऐसी कहानी प्रचलित है जिन कहानियों को सुनकर आज भी मन रोमांचित हो जाता है। इन कहानियों को सुनकर हैरानी होती है व मन में कई सारी जिज्ञासा उत्पन्न होती है। आज हम इस लेख में पांडव वंश के आखिरी राजा के बारे में बता रहें हैं किस प्रकार इनकी जान तक्षक नाग के बारे में बता रहें हैं।
एक बार ऋषि शमीक समाधि में बैठे हुए थे, वहा पर राजा परीक्षित प्यास से व्याकुल अवस्था में आएं। जब राजा प्यासे ऋषि के आश्रम पहुंचे और पानी मांगने लगे तो उस समय ऋषि समाधि में बैठे होने के कारण उन्होने नहीं सुना। इस पर परीक्षित को गुस्सा आ गया और उन्होने पास पड़े एक मरे सांप को ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गये।
ऋषि शमीक के पुत्र जब श्रृंगी आश्रम पहुंचे तो इस नजारे को देख कर राजा परीक्षित की इस हरकत के बारे में जान गये, उन्होंने गुस्से में राजा परीक्षित को श्राप दिया और कहा कि आज से ठीक सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
ऐसे में उस दिन से राजा परीक्षित ने सांप से अपने को दूर रखने की लाख कोशिशों अपना ली लेकिन सातवें दिन फूलों की टोकरी में कीड़े के रूप में छुपकर आएं तक्षक नाग के काटने से परीक्षित की मृत्यु हो गई।
इसके बाद परीक्षित के पुत्र जनमेजय जो पांडव वंश के आखिरी राजा थे, उन्होने तक्षक नाग से बदला लेने का संकल्प लिया। जिसके बाद इन्होंने सर्प मेध यज्ञ का अनुष्ठान किया, इस यज्ञ में धरती के सारे सांप एक के बाद एक हवन कुंड में आ कर गिरने लगे। जिससे लाखों सांपों की आहुति हो गई। ऐसे में तक्षक नाग सूर्यदेव के रथ से जाकर लिपट गए, ऐसे में अगर तक्षक नाग हवन कुंड में जाते तो उनके साथ सूर्यदेव को भी हवन कुंड में जाना पड़ता, ऐसे में सृष्टि की गति थम जाती। इसके बाद अस्तिक मुनि के हस्तक्षेप से जनमेजय ने महाविनाशक यज्ञ रोक दिया और तक्षक की जान बच गई।