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भारत का रहस्यमयी गणेश मंदिर जहां खुद-ब-खुद बड़ी हो रही बप्पा की मूर्ती, वीडियो में जानिए आजतक वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए रहस्य 

भारत का रहस्यमयी गणेश मंदिर जहां खुद-ब-खुद बड़ी हो रही बप्पा की मूर्ती, वीडियो में जानिए आजतक वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए रहस्य 

देशभर में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं। उन मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यताएं और कहानियां हैं। छत्तीसगढ़ के कांकेर में भी एक गणेश मंदिर है, जो अपनी चमत्कारिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। भानुप्रतापपुर के संबलपुर गांव का श्री गणेश मंदिर भी उन्हीं मंदिरों में से एक है, जो देश में भगवान गणेश की 5 जीवित मूर्तियों में से एक है। सदियों पुराने इस मंदिर और इससे जुड़े चमत्कारों की कहानियां बेहद रोचक हैं। कहा जाता है कि यहां मन्नत मांगने वाले भक्तों को भगवान श्री गणेश निराश नहीं करते। निःसंतान दंपत्ति हों या कोई अन्य भक्त, छोटी सूंड वाले विराजमान भगवान श्री गणेश सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जानिए इस गणेश मंदिर से जुड़ी रोचक कहानी कहा जाता है कि भगवान गणेश की मूर्ति सबसे पहले संबलपुर गांव से कुछ दूरी पर स्थित गढ़बांसला गांव में देखी गई थी। गढ़बांसला वही स्थान है, जिसे उस दौर के कंदरा राजा की राजधानी कहा जाता था। यह स्थान विभिन्न देवी-देवताओं का निवास स्थान है। वर्तमान में यहां मां शीतला माता और मां दंतेश्वरी का मंदिर है। यहां बने तालाब में भगवान गणेश तैरते नजर आए।


बैलगाड़ी के पहिए एक के बाद एक टूटते रहे
इस मंदिर की कहानी बड़ी रोचक है। मंदिर के पुजारी लाल बहादुर मिश्रा और स्थानीय लोग बताते हैं कि गढ़बांसाला के तालाब में इसे तैराकर संबलपुर लाने की तैयारी की गई थी। उस जमाने में मूर्ति छोटी थी। लेकिन भगवान श्री गणेश का वजन साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। बड़ी मुश्किल से बैलगाड़ी बुलाकर इसे ले जाने का प्रयास किया गया। थोड़ी दूर चलने पर बैलगाड़ी के पहिए टूट गए। लोगों ने दूसरी बैलगाड़ी बुलाई और एक बार फिर इसे ले जाने का प्रयास किया। जैसा पहले हुआ था वैसा ही हुआ, इस बार भी बैलगाड़ी के पहिए टूट गए। 7 किलोमीटर की इस दूरी में भगवान श्री गणेश ने अपने भक्तों की खूब परीक्षा ली और एक के बाद एक बैलगाड़ी के पहिए टूटते रहे। इस तरह करीब 12 बैलगाड़ियों के पहिए टूट गए। संबलपुर में एक स्थान पर आखिरी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया था। वहां से भगवान की मूर्ति को कोई हिला नहीं सका, मूर्ति वहीं स्थापित कर दी गई।

और फिर वहां मंदिर की स्थापना कर दी गई
स्थानीय लोगों का कहना है कि आखिरी बैलगाड़ी का पहिया टूटने के बाद जिस स्थान पर भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित की गई थी, वह आज भी उसी स्थान पर स्थापित है। उसे आज तक कोई हिला नहीं सका। भगवान श्री गणेश भूतल पर स्थापित हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आदिगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बुलाया गया था। मंदिर में प्रवेश करने के बाद उन्होंने बताया कि यहां भगवान गणेश सजीव रूप में विराजमान हैं। यह भगवान गणेश की 5 सजीव मूर्तियों में से एक है। जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। जिसके कारण आज भी मंदिर के जीर्णोद्धार के बावजूद भगवान गणेश भूतल के गर्भगृह में विराजमान हैं।

यह मूर्ति धीरे-धीरे अपने आप बड़ी होती जा रही है
स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने बताया है कि पहले भगवान गणेश की मूर्ति छोटी थी। जिसका आकार धीरे-धीरे अपने आप बढ़ने लगा है। उन्हें भी लगने लगा है कि मूर्ति का आकार वास्तव में बदल रहा है।

भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं
आज भी गांव में भगवान श्री गणेश को आमंत्रित किए बिना कोई काम नहीं होता। स्थानीय लोगों के अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से भी लोग बड़ी संख्या में यहां बप्पा के दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। चाहे वह निःसंतान दंपत्ति हो या कोई अन्य भक्त, भगवान विघ्नहर्ता उनकी मनोकामनाएं पूरी करते आए हैं। हर मंगलवार को यहां बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

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