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कैसे करें पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र को सिद्ध ? 2 मिनट के शानदार वीडियो जानें इससे मिलने वाले आध्यात्मिक लाभ

कैसे करें पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र को सिद्ध ? 2 मिनट के शानदार वीडियो जानें इससे मिलने वाले आध्यात्मिक लाभ

हिंदू धर्म में मंत्र साधना का विशेष महत्व है, और विशेषकर भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” को अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है। यह मंत्र केवल एक जप नहीं बल्कि एक साधना है, एक आध्यात्मिक यात्रा है जो साधक को शिव तत्व से जोड़ती है। पंचाक्षर मंत्र को सिद्ध करने की प्रक्रिया एक साधना पथ है, जिसके द्वारा साधक अपने भीतर स्थित शिवत्व को जागृत करता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि पंचाक्षर मंत्र को कैसे सिद्ध किया जाता है और जब यह सिद्ध हो जाता है तो साधक के जीवन में क्या परिवर्तन आते हैं।

पंचाक्षर मंत्र क्या है?
“ॐ नमः शिवाय” को पंचाक्षर मंत्र कहा जाता है क्योंकि इसमें पाँच अक्षर हैं – ‘न’, ‘म’, ‘शि’, ‘वा’, ‘य’। ‘ॐ’ को बीज मंत्र माना गया है जो ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक है। यह मंत्र न केवल भगवान शिव को समर्पित है बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के एकत्व की घोषणा भी करता है।

पंचाक्षर मंत्र की सिद्धि कैसे करें?
मंत्र सिद्धि का अर्थ होता है मंत्र की पूर्ण शक्ति को जाग्रत कर उसे अपने भीतर स्थापित करना। यह प्रक्रिया साधना, तप, नियम और आस्था से जुड़ी होती है। नीचे दिए गए चरणों का पालन करके कोई भी साधक इस मंत्र को सिद्ध कर सकता है:

1. संकल्प लें (संकल्प पूजन)
सिद्धि की शुरुआत संकल्प से होती है। साधक को पहले अपने इष्टदेव (यहाँ भगवान शिव) का आह्वान करके यह संकल्प लेना चाहिए कि वह नियत समय तक मंत्र जाप करेगा। यह संकल्प जल, पुष्प और अपने मन की शुद्धता के साथ किया जाता है।

2. नियमित जप करें
मंत्र सिद्धि के लिए न्यूनतम 125,000 (सवा लाख) जाप किए जाते हैं। प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर शांत वातावरण में जाप करना श्रेष्ठ माना जाता है।

3. मंत्र जाप की विधि
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें।
जाप के समय उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
हर मंत्र जाप में एकाग्रता और श्रद्धा होनी चाहिए।
हर दिन कम से कम एक निर्धारित संख्या (जैसे 108 या 1008) में जाप करें।

4. ध्यान और एकाग्रता
मंत्र जाप के साथ ध्यान भी अत्यंत आवश्यक होता है। भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करते हुए मंत्र का उच्चारण करने से उसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

5. पूर्णाहुति और हवन
जाप की संख्या पूर्ण होने पर एक विशेष हवन (यज्ञ) किया जाता है, जिसे पूर्णाहुति कहते हैं। इसमें गाय के घी, तिल, जौ आदि से हवन करते हुए मंत्र की आहुति दी जाती है।

मंत्र सिद्धि के बाद क्या होता है?
जब पंचाक्षर मंत्र सिद्ध हो जाता है, तब साधक के जीवन में गहरे स्तर पर आध्यात्मिक और मानसिक परिवर्तन आने लगते हैं। इसके कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं:

1. आंतरिक शांति और स्थिरता
मंत्र सिद्धि के बाद साधक के मन में स्थिरता आती है। विचारों की चंचलता समाप्त होती है और एक गहन शांति का अनुभव होता है।

2. शिव तत्व की अनुभूति
साधक अपने भीतर शिवत्व को महसूस करने लगता है। वह स्वयं को और समस्त सृष्टि को एक ही चेतना का भाग समझता है।

3. आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति
साधक में अंतर्दृष्टि (intuition), पूर्वाभास (premonition), और मानसिक स्पष्टता (mental clarity) जैसी विशेष शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं।

4. नकारात्मकता से सुरक्षा
मंत्र सिद्धि साधक को नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और मानसिक तनाव से बचाव प्रदान करती है। साधक की आभा (aura) शक्तिशाली बनती है।

5. मनोकामनाओं की पूर्ति
पंचाक्षर मंत्र को सिद्ध करने के बाद साधक की मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होने लगती हैं। उसकी सोच और कार्यों में सामंजस्य बनता है।

6. कर्मबंधन से मुक्ति
शिव पंचाक्षर मंत्र मोक्षदायक माना गया है। मंत्र सिद्ध होने पर साधक धीरे-धीरे अपने पिछले जन्मों के कर्मों के प्रभाव से मुक्त होने लगता है।

क्या कोई सावधानियाँ भी आवश्यक हैं?
हाँ, मंत्र सिद्धि अत्यंत पवित्र प्रक्रिया है, इसमें निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:
जाप के समय पूर्ण पवित्रता बनाए रखें।
मांस, मदिरा और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
अहंकार न रखें — मंत्र की शक्ति सेवा और विनम्रता में प्रकट होती है।
दूसरों को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से मंत्र का प्रयोग न करें।

पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" न केवल एक साधना है बल्कि यह साधक को शिव से जोड़ने का सेतु भी है। जब यह मंत्र सिद्ध हो जाता है, तो साधक अपने भीतर ही दिव्यता और शक्ति का अनुभव करता है। यह मंत्र केवल सुख-संपत्ति देने वाला नहीं, बल्कि जीवन के सभी स्तरों पर पूर्णता की ओर ले जाने वाला मार्ग है। श्रद्धा, नियम, और एकाग्रता से की गई इस साधना से न केवल शिव की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि साधक का जीवन भी शिवमय हो जाता है।

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