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वृंदावन से जयपुर तक कैसे पहुंची भगवान कृष्ण की प्रिय मूर्ति? वायरल वीडियो में देखे गोविंद देव जी मंदिर का 500 साल पुराना इतिहास

वृंदावन से जयपुर तक कैसे पहुंची भगवान कृष्ण की प्रिय मूर्ति? वायरल वीडियो में देखे गोविंद देव जी मंदिर का 500 साल पुराना इतिहास

गुलाबी नगरी जयपुर अपनी राजसी शान-ओ-शौकत से ब्रज के लाला को इतना भाया कि वे स्वयं वहीं जाकर बस गए। राजस्थान के लोगों ने उनका नाम गोविंद देव जी रखा। गोविंद देव जी का मंदिर जयपुर के परकोटा क्षेत्र के सिटी पैलेस परिसर में स्थित है। मंदिर परिसर में गोविंद देवी की मूर्ति इस प्रकार स्थापित है कि राजा सामने स्थित महल से उनके दर्शन कर सकते हैं। है न अद्भुत कहानी? आइए, दिसंबर के अंत और नए साल की शुरुआत में, आज हम आपको गुलाबी नगरी में स्थित ठाकुर गोविंद देव जी के मंदिर ले चलते हैं।

गोबिंद देव जी को जयपुर के आराध्य देव के रूप में पूजा जाता है। यहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त दर्शन के लिए पहुँचते हैं। वैसे तो पूरा जयपुर राजसी छवि का प्रतिबिंब है, लेकिन परकोटा क्षेत्र में पहुँचते ही आपको ऐसा लगता है जैसे आप जयपुर महाराजा के दरबार में जा रहे हों। सिटी पैलेस में एक बड़े घुमावदार दरवाजे से प्रवेश। दोनों ओर पूजन सामग्री, वस्त्र आदि की दुकानें। दुकानों पर लगे गोविंद देव जी के छोटे-बड़े चित्रों को देखकर कदम स्वतः ही तेज़ी से चलने लगते हैं। क्योंकि चित्रों में जो छवि मन को मोह रही है, वह असल में कैसी होगी? यही उत्सुकता भक्तों को गोविंद देव जी के द्वार तक खींच लाती है। परिसर में दो-चार कतारें लगी होती हैं।

भक्त दर्शन के लिए कतार में आगे बढ़ते हैं। विशाल परिसर में एक तरफ भक्तों की कतार लगी होती है तो दूसरी तरफ जब राजस्थान के पारंपरिक वाद्य यंत्र नगाड़े पर हरि नाम संकीर्तन की धुन बजती है, तो कतार में खड़े भक्त अपनी जगह पर ही नाचने को मजबूर हो जाते हैं। राधा रानी के साथ विराजमान गोविंद देव जी दूर से ही भक्तों की इस भक्ति को निहार रहे होते हैं। जैसे ही भक्त अपने आराध्य को अपनी ओर देखते हैं, भक्ति के चरमोत्कर्ष पर आँखों से आँसू बहने लगते हैं। गर्भगृह तक दर्शन के लिए भक्तों की अलग से कतार लगी होती है।

मंदिर की विशेषता
भगवान कृष्ण को समर्पित गोविंद देव जी का मंदिर जयपुर के सभी मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध है। मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें किसी भी प्रकार का कोई शिवाख नहीं बना है। मंदिर चन्द्र महल के पूर्व में बने जन निवास उद्यान के मध्य में स्थित है। गोविंद देव जी की मूर्ति पहले वृंदावन में स्थापित थी लेकिन 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब के आक्रमण के कारण इसे यहां लाया गया था। गोविंद देव जी की मूर्ति सबसे पहले आमेर महल में स्थापित की गई थी, फिर जयपुर के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने कुल देव के रूप में यहां गोविंद देव जी की मूर्ति को पुनः स्थापित किया। मंदिर परिसर में बनी सभी इमारतों को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। मंदिर का हॉल सबसे कम खंभों पर टिका है। मंदिर के रास्ते में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी बने हैं। यहां गौड़ीय संप्रदाय की पद्धति से पूजा-अर्चना की जाती है

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