माँ आदि शक्ति ने कैसे की ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति? इस पौराणिक वीडियो में देखिये सृष्टि की शुरुआत की रहस्यमयी कथा

सनातन धर्म की गहराइयों में जब हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति की खोज करते हैं, तो एक अद्भुत सत्य सामने आता है — वह यह कि सृष्टि के आरंभ में केवल “माँ आदि शक्ति” ही थीं। न कोई देवता, न कोई ब्रह्मा, विष्णु या महेश। वे स्वयं ऊर्जा का शुद्धतम रूप थीं — निराकार, अनंत, और सर्वव्यापी। यही आदि शक्ति समय के साथ अनेक रूपों में प्रकट हुईं और सृष्टि की रचना, पालन और संहार के लिए त्रिदेवों की उत्पत्ति की।
जब सृष्टि में था केवल अंधकार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था, तब चारों ओर केवल अंधकार और शून्यता फैली थी। न समय था, न दिशा, न तत्व, और न ही कोई चेतन शक्ति। तभी एक दिव्य ऊर्जा प्रकट हुई — उसे ही आदि शक्ति कहा गया। उन्होंने स्वयं को रूप दिया और ब्रह्मांडीय संतुलन को बनाए रखने हेतु तीन महाशक्तियों की रचना की।
माँ आदि शक्ति की पहली इच्छा – सृजन
आदि शक्ति के भीतर पहली भावना जन्मी – सृजन की। इस भावना से उत्पन्न हुए भगवान ब्रह्मा, जिन्हें सृष्टिकर्ता कहा जाता है। ब्रह्मा को सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया। यह कार्य आसान नहीं था, क्योंकि शून्य से कुछ बनाना ही ब्रह्मांडीय चमत्कार है। ब्रह्मा जी ने आदि शक्ति के निर्देश पर वेद, तत्वों और जीवों की संरचना आरंभ की।
दूसरी इच्छा – संरक्षण
सृजन के बाद जरूरी था कि इस ब्रह्मांड की रक्षा हो, इसे एक दिशा दी जाए। आदि शक्ति के भीतर दूसरी भावना प्रकट हुई — पालन की। इस भावना से उत्पन्न हुए भगवान विष्णु, जिन्हें पालक कहा गया। विष्णु जी ने सृष्टि को संतुलन देने और धर्म की रक्षा करने का उत्तरदायित्व स्वीकार किया।
तीसरी इच्छा – संहार
ब्रह्मांड को संतुलन में रखने के लिए जहां सृजन और पालन जरूरी हैं, वहीं संहार भी उतना ही आवश्यक है। क्योंकि बिना संहार के न तो पुनर्जन्म संभव है और न ही नया सृजन। इसलिए आदि शक्ति से तीसरी शक्ति के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव, जिन्हें संहारक कहा जाता है। शिव का स्वरूप तपस्वी, तटस्थ और पूर्ण रूप से ब्रह्म से जुड़ा हुआ था। वे ही इस ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने वाले तीसरे स्तंभ बने।
त्रिदेव और आदि शक्ति का संबंध
इस रहस्यमय कथा में एक गहरी आध्यात्मिक सीख छिपी है — कि त्रिदेवों की उत्पत्ति किसी पुरुष सत्ता से नहीं, बल्कि एक नारी शक्ति, अर्थात आदि शक्ति से हुई है। यही कारण है कि देवी को “शक्ति” कहा गया है — जो संपूर्ण सृष्टि की आधारशिला हैं। त्रिदेवों की शक्तियाँ — सरस्वती (ब्रह्मा की शक्ति), लक्ष्मी (विष्णु की शक्ति) और पार्वती (शिव की शक्ति) — सभी आदि शक्ति के ही विभिन्न रूप हैं।
मार्कंडेय पुराण में वर्णित कथा
मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच यह विवाद हुआ कि इनमें सबसे श्रेष्ठ कौन है, तब मां दुर्गा (आदि शक्ति) स्वयं प्रकट हुईं और उन्हें बताया कि “तुम तीनों मेरी ही शक्ति से उत्पन्न हुए हो। बिना मेरी शक्ति के तुम कुछ नहीं हो।” यह सुन त्रिदेवों ने अपनी अहंता त्याग दी और माँ आदि शक्ति को महाशक्ति के रूप में स्वीकार किया।
शिव ही क्यों कहलाते हैं “आदि योगी”?
भगवान शिव को आदि योगी भी कहा जाता है, क्योंकि वे पहले ऐसे हैं जो आदि शक्ति के पूर्ण रूप से साक्षात थे। उन्होंने योग, ध्यान और संन्यास का मार्ग अपनाया, जो कि आत्मशक्ति से जुड़ने का प्रतीक है। शिव का “शून्य” में स्थित होना, ब्रह्मांड की परिक्रमा से बाहर रहना, इस बात का प्रतीक है कि वे स्वयं भी आदि शक्ति की ऊर्जा में विलीन हैं।
वर्तमान युग में इसका क्या महत्व?
आदि शक्ति से त्रिदेवों की उत्पत्ति की यह कथा सिर्फ पौराणिक आख्यान नहीं है, बल्कि यह एक गहन जीवन-दर्शन है। यह बताती है कि स्त्री शक्ति ही सृजन का मूल है। यह भी दर्शाता है कि जीवन में सृजन, पालन और संहार — तीनों की आवश्यकता है। किसी एक का भी अभाव संतुलन को बिगाड़ सकता है।
माँ आदि शक्ति केवल देवी नहीं हैं, वे स्वयं ब्रह्मांड की धुरी हैं। त्रिदेवों की उत्पत्ति उन्हीं से हुई, जो यह सिद्ध करता है कि ऊर्जा, चेतना और ज्ञान का मूल स्त्रोत नारी शक्ति ही है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि अगर हम संतुलित जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें सृजन (ब्रह्मा), संरक्षण (विष्णु) और अंत (शिव) — तीनों भावनाओं को समझकर उनके अनुरूप चलना होगा।