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आखिर कैसे बर्बरीक बने खाटू श्याम? वीडियो में जानिए महाभारत के वीर योद्धा की बलिदान गाथा जो बन गई आस्था का प्रतीक

आखिर कैसे बर्बरीक बने खाटू श्याम? वीडियो में जानिए महाभारत के वीर योद्धा की बलिदान गाथा जो बन गई आस्था का प्रतीक

आप में से कई लोगों ने खाटू श्याम बाबा के दर्शन किए होंगे या फिर कई लोगों के मन में उनका आशीर्वाद पाने की इच्छा होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये खाटू श्याम बाबा कौन हैं और बर्बरीक के खाटू श्याम बनने की रहस्यमयी कहानी क्या है…

कहां है खाटू श्याम मंदिर
राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम जी का मंदिर है। इस मंदिर में देश भर से लोग बाबा को अपनी जरूरतें बताने पहुंचते हैं। मान्यता है कि एक बार बाबा के दरबार में कदम रखने के बाद बाबा उनकी मनोकामना जरूर पूरी करते हैं और बाबा का आशीर्वाद उन पर बना रहता है। क्या आप जानते हैं खाटू श्याम बाबा की कहानी…

कौन हैं खाटू बाबा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार खाटू श्याम बाबा की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। खाटू श्याम कोई और नहीं बल्कि महाबली भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं। कहा जाता है कि सिर धड़ से अलग होने के बाद भी उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखा था। महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का सिर दान में मांगा था, जिसे उन्होंने सहर्ष दान कर दिया था। इसके बाद भगवान ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया कि कलियुग में उसे बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजा जाएगा और जो भी खाटू श्याम की पूजा करेगा उसे भी उनका आशीर्वाद मिलेगा।

बाबा से जुड़ी क्या हैं मान्यताएं
खाटू श्याम बाबा को कलियुग का देवता माना जाता है। इसके साथ ही उन्हें असहायों का सहारा भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी बाबा के दर पर आता है, बाबा उसे हर संकट से बचाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि हारे का सहारा बाबा श्याम हमारे हैं।

बर्बरीक के खाटू श्याम बनने की कहानी
कहानी के अनुसार बर्बरीक बहुत ही वीर योद्धा थे, महाभारत युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी मां अहिल्यावती से युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। जब उनकी मां ने इसके लिए अनुमति दी तो उन्होंने अपनी मां से पूछा, 'युद्ध में मैं किसका साथ दूं?' इस प्रश्न पर उनकी माता ने सोचा कि कौरवों के पास तो बहुत बड़ी सेना है, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महान योद्धा हैं, उनके सामने पांडव अवश्य हार जाएंगे। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि 'तुम हार रहे व्यक्ति का सहारा बनो।' बर्बरीक ने अपनी माता से ऐसा करने का वचन लिया और वे युद्ध भूमि के लिए निकल पड़े। भगवान कृष्ण बर्बरीक के युद्ध में भाग लेने और उनकी प्रतिज्ञा से परिचित थे और उन्हें युद्ध का अंत भी पता था।

क्योंकि कौरवों को हारता देख अगर बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया तो पांडवों का युद्ध जीतना मुश्किल हो जाएगा। यह भी पढ़ें: देवउठनी एकादशी पर करें ये 6 उपाय, प्रसन्न होंगे भगवान इस पर भगवान कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के पास पहुंचे और दान में उनका सिर मांग लिया। बर्बरीक सोचने लगे कि एक ब्राह्मण मेरा सिर क्यों मांगेगा? यह सोचकर उन्होंने ब्राह्मण का वास्तविक रूप देखने की इच्छा व्यक्त की। भगवान कृष्ण अपने विशाल रूप में उसके सामने प्रकट हुए। इस पर उसने अपनी तलवार निकालकर अपना सिर श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया और महाभारत युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की। इस पर भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का सिर युद्ध भूमि के पास सबसे ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकता था। यह स्थान खाटू के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने उसे वरदान भी दिया कि कलियुग में उसे खाटू श्याम बाबा के नाम से पूजा जाएगा। जो लोग उसकी पूजा करेंगे उन्हें भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होगा। माता को दिए वचन के अनुसार तुम हारे हुए का सहारा बनोगे। लोग तुम्हारे दरबार में आएंगे और जो मांगेंगे उसे प्राप्त करेंगे।

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