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क्या आपने की है पंचभूत लिंगों की यात्रा? वायरल वीडियो में जानिए इन पांच पवित्र शिवधामों की पौराणिक कथा

क्या आपने की है पंचभूत लिंगों की यात्रा? वायरल वीडियो में जानिए इन पांच पवित्र शिवधामों की पौराणिक कथा

भगवान शिव को पंचतत्त्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का अधिपति माना गया है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित ये पांच पवित्र शिवधाम पंचतत्त्वों से जुड़े हैं और इन्हें पंचभूत लिंगों के नाम से जाना जाता है। हर एक लिंग भगवान शिव के एक विशेष रूप और तत्व का प्रतीक है।इनकी यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का विषय है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने की एक सशक्त साधना भी है। आइए जानते हैं इन पांच पवित्र स्थलों की पौराणिक कथाएं और उनका महत्व।


1. पृथ्वी तत्व – एकाम्बरेश्वर (कांचीपुरम)
पंचभूत लिंगों में पहला लिंग "पृथ्वी तत्व" का प्रतिनिधित्व करता है, जो कांचीपुरम में स्थित श्री एकाम्बरेश्वर मंदिर में विराजमान है। मान्यता है कि माता पार्वती ने यहां एक आम के पेड़ के नीचे मिट्टी का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और माता से विवाह कर लिया। यह शिवलिंग पृथ्वी तत्व का प्रतीक है, इसलिए इसे प्रिथ्वी लिंग कहा जाता है। यह स्थान "स्थिरता" और "आध्यात्मिक मजबूती" का केंद्र माना जाता है।

2. जल तत्व – जम्बुकेश्वर (तिरुवनैकवल)
दूसरा तत्व "जल" का प्रतीक जम्बुकेश्वर मंदिर है, जो तिरुचिरापल्ली (तिरुची) के पास स्थित है। मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने यहां एक कावेरी की सहायक धारा के तट पर जल से बने लिंग की पूजा की थी। आश्चर्य की बात यह है कि गर्भगृह में जलधारा हमेशा बहती रहती है, जो आज भी रहस्य बना हुआ है। यह स्थान "भावनाओं की शुद्धता" और "भक्ति में बहाव" का प्रतीक है।

3. अग्नि तत्व – अरुणाचलश्वर (तिरुवन्नामलाई)
तीसरा पंचभूत लिंग "अग्नि तत्व" से संबंधित है, जो तिरुवन्नामलाई में स्थित अरुणाचलश्वर मंदिर में स्थापित है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने एक अनंत अग्नि स्तंभ का रूप धारण किया था, जिसे ब्रह्मा और विष्णु समझ नहीं पाए। यह अग्नि स्तंभ ही अरुणाचलश्वर लिंग के रूप में पूजित है। यहां हर साल कार्तिगई दीपम उत्सव मनाया जाता है, जब पहाड़ की चोटी पर विशाल अग्निशिखा प्रज्वलित की जाती है। यह लिंग "ज्ञान" और "आत्मप्रकाश" का प्रतीक है।

4. वायु तत्व – श्री कालहस्तीश्वर (श्रीकालहस्ती)
श्री कालहस्ती में स्थित शिवलिंग वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। मान्यता है कि यहां वायुदेव ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और यहीं वायु लिंग रूप में प्रतिष्ठित हुए। यहां दीपक बिना हवा के भी हिलता रहता है, जिसे वायु तत्व की उपस्थिति माना जाता है। यह लिंग प्राण शक्ति, जीवन ऊर्जा और सांसों की लय का प्रतीक है।

5. आकाश तत्व – चिदंबरम नटराज (चिदंबरम)
आखिरी लिंग "आकाश तत्व" का प्रतिनिधित्व करता है, जो चिदंबरम में स्थित है। हालांकि यहां पारंपरिक शिवलिंग नहीं है, बल्कि भगवान शिव को नटराज रूप में नृत्य करते हुए पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में एक खाली स्थान है, जिसे "चिदंबरम रहस्य" कहा जाता है – जो आकाश तत्व, यानी शून्यता और ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक है। यह स्थान आत्मबोध, ध्यान और निर्विकल्प अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।

पंचभूत लिंग यात्रा का आध्यात्मिक महत्व
इन पांचों शिवधामों की यात्रा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना यात्रा है। पृथ्वी से आकाश तक की यह यात्रा हमारे शरीर के पंचतत्त्वों को संतुलित करने और चेतना को जाग्रत करने का माध्यम बन सकती है। हर तत्व हमारे शरीर, मन और आत्मा से गहराई से जुड़ा है – और भगवान शिव के ये पंचभूत स्वरूप हमें उसी ऊर्जा से जोड़ते हैं।अगर आपने अब तक इन पांच पवित्र स्थलों की यात्रा नहीं की है, तो सावन का पावन महीना इस यात्रा के लिए सर्वोत्तम अवसर हो सकता है। हर मंदिर अपने आप में एक दिव्य अनुभव है, जो भक्त को शिव से जोड़ता है — तत्वों के माध्यम से, चेतना के माध्यम से और प्रेम के माध्यम से।

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