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हरि भी हैं, हर भी हैं... बिहार के इस प्राचीन मंदिर में एक साथ होता है ब्रह्मांड के दो महाशक्तियों का पूजन, वीडियो में जाने कहां है ये स्थान ?

हरि भी हैं, हर भी हैं... बिहार के इस प्राचीन मंदिर में एक साथ होता है ब्रह्मांड के दो महाशक्तियों का पूजन, वीडियो में जाने कहां है ये स्थान ?

बिहार, जो अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, यहां एक ऐसा मंदिर स्थित है जो अद्भुत धार्मिक समरसता और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर न केवल भक्ति की भावना को जाग्रत करता है, बल्कि शैव और वैष्णव दोनों परंपराओं के अनुयायियों को एक ही छत के नीचे आस्था से जोड़ता है। यह स्थान है – हरि-हर मंदिर, जो बिहार के नालंदा जिले के फतेहपुर गांव में स्थित है।

हरि और हर – एक साथ एक मंदिर में

भारतीय धर्म-दर्शन में भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) को दो अलग-अलग प्रमुख धाराओं – वैष्णव और शैव संप्रदाय – के रूप में पूजा जाता है। अक्सर इन दोनों संप्रदायों के मंदिर अलग-अलग होते हैं और उनके अनुयायियों के रीति-रिवाज़ भी भिन्न होते हैं। मगर फतेहपुर का यह मंदिर दोनों को एक साथ विराजमान देखता है – एक दुर्लभ और प्रेरक दृश्य।यह मंदिर उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जहां भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही गर्भगृह में साथ विराजते हैं। एक ओर शिवलिंग है, जो ‘हर’ का प्रतीक है, तो दूसरी ओर विष्णु भगवान की मूर्ति, जो ‘हरि’ का प्रतिनिधित्व करती है। यह मंदिर वास्तव में धार्मिक समन्वय और सांप्रदायिक एकता का जीवंत उदाहरण है।

कार्तिक माह में लगता है विश्व प्रसिद्ध मेला

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोनपुर में लगने वाले हरिहरक्षेत्र मेले के दौरान कनाडा, डेनमार्क, इटली, स्विट्जरलैंड, अमेरिका और जापान जैसे देशों से पर्यटक बाबा हरिहरनाथ के दिव्य दर्शन करना नहीं भूलते। विदेशी पर्यटक न केवल बाबा के दर्शन करते हैं, बल्कि अपने साथ आए दुभाषिए के माध्यम से यहां के पंडा-पुजारियों से मंदिर का इतिहास भी जानते हैं। हर धार्मिक अवसर पर श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाला हरिहरक्षेत्र की पावन भूमि पर स्थित ऐतिहासिक बाबा हरिहरनाथ मंदिर सावन माह में पूरे एक माह तक श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है। पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण यहां धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई थी। इस बार सावन माह में मंदिर श्रद्धालुओं से गुलजार है। दो साल बाद जब स्थिति कुछ सामान्य हुई तो श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखा गया और बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के जलाभिषेक और पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचने लगे। सावन माह में लाखों श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने के लिए प्रशासनिक स्तर पर व्यापक इंतजाम किए गए हैं।

बाबा हरिहरनाथ की पौराणिक कथा

बाबा हरिहरनाथ के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि शैव और वैष्णवों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष का यही संगम स्थल है। यहीं पर इस संघर्ष का अंत हुआ था। तत्पश्चात, दोनों धर्मों के भक्तों ने उसी स्थान पर हरि अर्थात विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव की मूर्ति स्थापित की। मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री बताते हैं कि महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते समय भगवान राम ने इस मनोरम स्थान पर रुककर अपने हाथों से बाबा हरिहरनाथ की स्थापना की थी। भगवान विष्णु और परब्रह्म भगवान शंकर की संयुक्त मूर्ति अन्यत्र दुर्लभ है। एक कथा यह भी है कि भगवान विष्णु का अनन्य भक्त एक हाथी गंडक नदी में पानी पीने के लिए उतरा। वहाँ उसे एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। हाथी उस शक्तिशाली मगरमच्छ के सामने असहाय हो गया। तब उसने अपने भगवान को पुकारा। उसकी करुण पुकार सुनकर भगवान प्रकट हुए। उन्होंने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ को काटकर अपने भक्त की रक्षा की।

सावन माह में बाबा हरि और हर का विशेष श्रृंगार

बाबा हरिहरनाथ मंदिर न्यास समिति के सचिव विजय लल्ला बताते हैं कि यह परंपरा रही है कि सावन माह में बाबा हरि और हर के विशेष श्रृंगार के साथ-साथ पूरे मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। सावन के प्रत्येक सोमवार को यहाँ भक्तों के सौजन्य से बाबा का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है। तत्पश्चात, भक्तों द्वारा श्रृंगार का क्रम शुरू हुआ और फिर श्रावण मास के प्रत्येक दिन विशेष श्रृंगार का क्रम शुरू हुआ। वहीं, सोमवार की शाम नारायणी नदी के तट पर नारायणी महाआरती का मनोरम दृश्य कौन भूल सकता है।

पटना और हाजीपुर से मंदिर पहुँचने का मार्ग

बाबा हरिहरनाथ मंदिर तक हाजीपुर से पुराने और नए गंडक पुल के रास्ते पहुँचा जा सकता है। पुराने गंडक पुल से दो किमी और नए गंडक पुल से तीन किमी की दूरी पर स्थित है। पटना से जेपी सेतु और महात्मा गांधी सेतु होते हुए हाजीपुर होते हुए सीधे मंदिर पहुँचा जा सकता है। पटना से मंदिर की दूरी जेपी सेतु के रास्ते 15 किमी और गांधी सेतु के रास्ते 20 किमी है। सोनपुर से ट्रेन द्वारा भी मंदिर पहुँचा जा सकता है। हाजीपुर और पटना जंक्शन से सोनपुर के लिए ट्रेन सेवा उपलब्ध है।

जल प्रलय में भी हरिहरनाथ की धरती नहीं डूबी

पुजारी बमबम बाबा बताते हैं कि जब पृथ्वी पर जल प्रलय आया था, तब यही एकमात्र स्थान था जहाँ जल नहीं भरा था। भगवान ब्रह्मा ने यहीं पर हरि और हर की मूर्तियाँ स्थापित की थीं। ज्ञातव्य है कि कार्तिक पूर्णिमा, श्रावणी और महाशिवरात्रि के अवसर पर बाबा हरिहरनाथ के दर्शन, पूजन और जलाभिषेक के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मुख्य पुजारी सुशील शास्त्री के अनुसार, न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश और विदेश से भक्त बाबा हरिहरनाथ की पूजा और जलाभिषेक करने आते हैं। बाबा हरिहरनाथ सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं। यहाँ स्थापित भगवान विष्णु और देवों के देव भगवान शंकर की संयुक्त मूर्ति अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।

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