इस बुधवार विशेष को करेंगे गौरी-गणेश की पूजा तो आपके घर होगी धनवर्षा…
स्कंद पुराण में यह वर्णित है कि देवी पार्वती ने माता गौरी के रूप में रानी मैना और पर्वतराज हिमवान के घर जन्म लिया था। देवर्षि नारद की सलाह पर माता गौरी ने अखंड तपस्या कर महादेव को प्राप्त किया था।
माता गौरी ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का अवतरण कर उन्हें द्वारपाल बनाया था। बाद में भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया था।
बाद में माता गौरी के नाराज होने पर भगवान विष्णु ने गणेश के सिर पर गजमुख लगा दिया तथा सभी देवों ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया। आपको बतादें कि भगवान भोलेनाथ और महाकाली के बड़े पुत्र के रूप में पूरे संसार में विघ्नविनाशक भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
आदि देव गणपति की पूजा का उल्लेख यजुर्वेद व ऋग्वेद में भी किया गया है। इशों उपनिषद में कहा गया है कि पंच देवोपासना में भगवान गणपति को उच्च स्थान प्राप्त हैं। भगवान गणेशजी को महाभारत का लेखक माना जाता है।
भाद्रपद शुक्ल नवमी यानि 30 अगस्त को माता गौरी व उनके पुत्र गणेश जी की पूजा करने पर माता और पुत्र के बीच आपसी प्रेम बढ़ता ही रहता है और पुत्र उन्नति की ओर अग्रसर होता रहता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गौरी-गणेश की पूजा भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की जेष्ठा नक्षत्र व्यापीनी नवमी अथवा दशमी तिथि को किया जाता है। आपको जानकारी के लिए बतादें कि बुधवार दिनांक 30.08.17 को चंद्रमा वृश्चिक राशि और जेष्ठा नक्षत्र में मौजूद रहेगा।
गौरी-गणेश पूजन का शुभ महूर्त:
बुधवार दिनांक 30.08.17,सुबह 06:01 से लेकर शाम 18:41 तक।
शाम 16:04 से विष-कुंभ नाम का योग बन रहा है जो अतिशुभकारी है।
पूजा विधि:
गौरी—गणेश पूजा करते समय गाय के घी का दीपक जलाएं। इसके बाद सुगंधित धूप के साथ भगवान गणेश को सिंदूर अर्पित करें तथा गौरी को गौलोचन से तिलक लगाएं। तत्पश्चात गणपति को गुड़हल के फूल,यज्ञोपवीत, बिल्व, अशोक के पत्ते, दूर्वा और माता गौरी को शमीपत्र अर्पित करें। पूजा में भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाएं और माता गौरी को काला-चना व हलवे का भोग लगाएं। माता को लाल चुनरी और भगवान गणेश को हरी चुनरी चढ़ाएं। रुद्राक्ष की माला से ॐ गौरी-गणेशाय नम: का सामर्थ्यानुसार जाप करें।
इस विधि से पूजा—अर्चना करने पर श्रद्धालु के दुख—दरिद्र दूर हो जाते हैं और वह भाग्य और धन आदि से निहाल हो जाता है।

