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क्या शिव पंचाक्षर स्तोत्र के 108 बार पाठ से जागृत होती है शिव-शक्ति ? 2 मिनट के लीक्ड फुटेज में जाने इसे सिद्ध करने की रहस्यमयी विधि 

क्या शिव पंचाक्षर स्तोत्र के 108 बार पाठ से जागृत होती है शिव-शक्ति ? 2 मिनट के लीक्ड फुटेज में जाने इसे सिद्ध करने की रहस्यमयी विधि 

भारतीय सनातन धर्म में भगवान शिव को संहारक, सृष्टिकर्ता और करुणा के सागर के रूप में जाना जाता है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई स्तोत्रों और मंत्रों का उल्लेख पुराणों में मिलता है, जिनमें ‘शिव पंचाक्षर स्तोत्र’ का विशेष महत्व है। इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी, जिसमें "ॐ नमः शिवाय" के पांच अक्षरों के भावात्मक, आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय स्वरूप को समर्पित पाँच श्लोकों के माध्यम से समझाया गया है। सवाल यह उठता है कि इस स्तोत्र का जाप कितनी बार किया जाए ताकि इसका पूर्ण फल मिल सके? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी स्तोत्र से जुड़े वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और श्रद्धा से परिपूर्ण पहलुओं को।


क्या है शिव पंचाक्षर स्तोत्र?
‘शिव पंचाक्षर स्तोत्र’ में “न, म, शि, वा, य” इन पंचाक्षरों को एक-एक श्लोक में देवत्व, तत्व और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है। यह स्तोत्र भगवान शिव के निराकार स्वरूप को ध्यान में रखकर रचा गया है, जो पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना हुआ ब्रह्मांड दर्शाता है।

उदाहरण के लिए:
"नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय॥"

यह श्लोक ‘न’ अक्षर को समर्पित है, जिसमें शिव के त्रिनेत्र, नागों के हार और भस्म से लिप्त स्वरूप की स्तुति की गई है।

कितनी बार करें जाप?
यह प्रश्न सभी श्रद्धालुओं के मन में होता है कि शिव पंचाक्षर स्तोत्र का जाप कितनी बार करना चाहिए ताकि इसका पूर्ण फल प्राप्त हो सके। शास्त्रों और अनुभवजन्य परंपरा के अनुसार, यह संख्या तीन प्रमुख स्तरों में बांटी जा सकती है:

1. नित्य जाप – 5 बार या 11 बार:
यदि आप प्रतिदिन इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहते हैं तो 5 बार या 11 बार इस स्तोत्र का जाप करें। यह संख्याएं पंचतत्व और 11 रुद्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिससे जीवन में संतुलन और स्थायित्व बना रहता है।

2. फल प्राप्ति हेतु – 21 बार या 51 बार:
यदि आप किसी विशेष मनोकामना या स्वास्थ्य, धन, मानसिक शांति आदि के लिए शिव पंचाक्षर स्तोत्र का जाप कर रहे हैं, तो इसे 21 बार या 51 बार करना अधिक प्रभावी माना जाता है। यह संख्या आध्यात्मिक रूप से शुभ तथा मंत्र सिद्धि की दिशा में बढ़ने वाली होती है।

3. पूर्ण सिद्धि और साधना हेतु – 108 बार:
वास्तविक रूप से यदि आप इस स्तोत्र से पूर्ण फल प्राप्त करना चाहते हैं तो इसे 108 बार करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। 108 हिंदू धर्म में एक पवित्र संख्या है जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा, ग्रह-नक्षत्रों और शरीर के 108 प्राण ऊर्जा केंद्रों से जुड़ी हुई मानी जाती है।

जाप का समय और विधि
सबसे शुभ समय ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) माना जाता है।
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर शिवलिंग के सामने बैठकर जाप करें।
रुद्राक्ष की माला से मंत्र या स्तोत्र का उच्चारण करें, इससे मंत्र शक्ति और भी अधिक जागृत होती है।
दीपक जलाकर, गंगाजल या जल अर्पण के साथ जाप करने से यह साधना और अधिक प्रभावी हो जाती है।

जाप के लाभ
मानसिक शांति: यह स्तोत्र चित्त को शांत करता है, तनाव और चिंता को दूर करता है।
नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: नियमित जाप व्यक्ति को बुरी नजर, नकारात्मकता और भय से मुक्त करता है।
आरोग्यता और लंबी आयु: शिव के पंचतत्व स्वरूप को नमन करने से शरीर में संतुलन बना रहता है।
आध्यात्मिक उन्नति: शिव पंचाक्षर स्तोत्र आत्मा को ब्रह्म से जोड़ता है, साधक की चेतना ऊर्ध्वगामी होती है।

‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप और शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ सिर्फ भक्ति का विषय नहीं है, बल्कि यह साधक के शरीर, मन और आत्मा को दिव्य ऊर्जा से भरने की एक अद्भुत क्रिया है। जाप की संख्या जितनी अधिक, साधना उतनी गहन और फल उतना ही प्रभावशाली। यदि आप श्रद्धा, नियम और एकाग्रता से इस स्तोत्र का जाप करेंगे तो निश्चित रूप से शिव कृपा के साथ आपके जीवन में सुख, शांति और सिद्धि का वास होगा।

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