Samachar Nama
×

आखिर सदियों पुराने Moti Dungri मंदिर में बाई ओर क्यों है बप्पा की सूंड? वीडियो में रहस्य जान चौंक जाएंगे आप 

आखिर सदियों पुराने Moti Dungri मंदिर में बाई ओर क्यों है बप्पा की सूंड? वीडियो में रहस्य जान चौंक जाएंगे आप 

जयपुर की गुलाबी गलियों के बीच बसा मोती डूंगरी गणेश मंदिर न सिर्फ आस्था का एक मजबूत केंद्र है, बल्कि रहस्यों से भी भरा हुआ है। भारत में गणेश जी की अधिकांश प्रतिमाओं में उनकी सूंड दाईं ओर दिखाई देती है, जिसे "दक्षिणाभिमुखी" कहा जाता है, लेकिन मोती डूंगरी मंदिर की गणेश प्रतिमा में उनकी सूंड बाईं ओर है।आखिर इस अनोखी विशेषता के पीछे क्या रहस्य है? क्यों इस मंदिर की गणपति प्रतिमा को इतनी विशिष्ट और अद्भुत माना जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे की दिलचस्प कहानी।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
मोती डूंगरी मंदिर का इतिहास 18वीं सदी से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि महाराजा माधोसिंह प्रथम ने यह मंदिर बनवाया था। मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसे स्थानीय भाषा में 'डूंगरी' कहा जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में जो गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है, वह लगभग 500 साल पुरानी मानी जाती है और इसे गुजरात के एक विशेष स्थान से जयपुर लाया गया था।प्रतिमा की स्थापना के समय ही यह स्पष्ट हुआ कि गणपति बप्पा की सूंड बाईं ओर झुकी हुई है। उस समय के ज्योतिषाचार्यों और विद्वानों ने इसे एक शुभ संकेत माना और इसी रूप में बप्पा की स्थापना कर दी गई।

बाईं ओर सूंड होने का धार्मिक महत्व
भारतीय धार्मिक मान्यताओं में गणेश जी की सूंड का दाईं या बाईं ओर होना विशेष महत्व रखता है।
दाईं ओर सूंड: इसे शक्तिमय और क्रोधी स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। दक्षिणमुखी गणेश जी की पूजा विशेष विधि और नियमों के तहत ही की जाती है।
बाईं ओर सूंड: यह स्वरूप सौम्य, मंगलकारी और कल्याणकारी माना जाता है। बाईं ओर सूंड वाले गणेश जी 'वामन गणपति' कहलाते हैं, जो भक्तों की सभी बाधाओं को प्रेमपूर्वक दूर करते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
इसलिए मोती डूंगरी मंदिर में विराजित गणेश जी की बाईं ओर सूंड होना विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। यहाँ पूजा करना अपेक्षाकृत सरल होता है और भक्तों की मनोकामनाएँ शीघ्र पूरी होने की मान्यता है।

क्यों है मोती डूंगरी गणेश मंदिर इतना प्रसिद्ध?
मनोकामना पूर्ण करने वाला स्थल: स्थानीय मान्यता है कि मोती डूंगरी गणेश जी के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है।हर शुभ कार्य की शुरुआत यहाँ से: जयपुर और आसपास के इलाके में शादी, नया घर, नया व्यवसाय या नया वाहन खरीदने पर सबसे पहले मोती डूंगरी जाकर बप्पा का आशीर्वाद लिया जाता है।
विशेष त्योहारों पर विशाल आयोजन: गणेश चतुर्थी, बुधवार के दिन और विशेष व्रतों के समय लाखों भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। गणपति बप्पा के दर्शन मात्र से जीवन में नई ऊर्जा का संचार माना जाता है।
सौम्य और आकर्षक स्वरूप: बाईं सूंड वाले बप्पा का शांत और सुखद चेहरा श्रद्धालुओं के मन में विशेष श्रद्धा जगाता है। मंदिर परिसर का शांत वातावरण और भव्य निर्माण इसे और भी दिव्य अनुभव बनाता है।

रहस्यमयी कथाएँ और मान्यताएँ
मोती डूंगरी मंदिर से जुड़ी कई लोक कथाएँ भी प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब प्रतिमा को गुजरात से लाया जा रहा था, तो जयपुर पहुँचते ही रथ खुद-ब-खुद यहीं रुक गया। इसे भगवान गणेश का संकेत समझा गया कि वे इसी स्थान पर स्थापित होना चाहते हैं। तभी से यह स्थान पुण्य और आस्था का केंद्र बन गया।एक और मान्यता के अनुसार, मोती डूंगरी के गणेश जी के दर्शन मात्र से जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं और जीवन में नयी राहें खुलती हैं। इसी कारण, इस मंदिर में दूर-दूर से लोग सिर्फ एक झलक पाने के लिए भी आते हैं।

वास्तुशास्त्र और सूंड की दिशा का संबंध
वास्तुशास्त्र में भी बाईं ओर सूंड वाले गणेश जी को घर या प्रतिष्ठान में रखने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे प्रेम, समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है। मोती डूंगरी के गणेश जी इसी शुभता के प्रतीक हैं, जो भक्तों के जीवन में सौभाग्य और मंगल कामनाओं की वर्षा करते हैं।विशेषज्ञों के अनुसार, बाईं सूंड जीवन में स्थिरता और संतुलन का प्रतीक भी है। यह दिखाता है कि बाधाएँ तो आएंगी, लेकिन बप्पा के आशीर्वाद से उन्हें पार करना आसान हो जाएगा।

मोती डूंगरी का आधुनिक महत्व
आज मोती डूंगरी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि जयपुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बन चुका है। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आकर भारतीय संस्कृति की गहराई और आध्यात्मिकता को नजदीक से महसूस करते हैं।इसके आसपास स्थित बिरला मंदिर, मोती डूंगरी किला और खूबसूरत बाजार इस क्षेत्र को जयपुर के सबसे जीवंत हिस्सों में से एक बनाते हैं।

Share this story

Tags