आखिर मां दुर्गा ने अपनी सवारी के रूप में क्यों चुना शेर ? 3 मिनट के इस आध्यात्मिक वीडियो में जाने पौराणिक कथा और महत्त्व

हिंदू धर्म में देवी दुर्गा को शक्ति, साहस और विजय की प्रतीक माना जाता है। उनका स्वरूप मातृत्व, करुणा और पराक्रम का अद्वितीय संगम है। देवी दुर्गा का शेर पर सवार होना केवल एक प्रतीकात्मक चित्र नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और पौराणिक रहस्य छिपे हैं। मां दुर्गा की सवारी शेर क्यों है, इसका क्या महत्व है और इससे जुड़ी कौन सी पौराणिक कथा प्रसिद्ध है—आइए इस लेख में इन पहलुओं को विस्तार से जानते हैं।
शेर: शक्ति, साहस और नियंत्रण का प्रतीक
शेर को जंगल का राजा कहा जाता है, और यह साहस, शक्ति और भयमुक्त जीवन का प्रतीक है। जब मां दुर्गा को शेर पर विराजमान दिखाया जाता है, तो यह इस बात का संकेत है कि उन्होंने अपनी चेतना और आत्मबल से सभी पशु प्रवृत्तियों—जैसे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, मोह और अहंकार—पर विजय प्राप्त की है। शेर किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए डर का प्रतीक हो सकता है, लेकिन देवी दुर्गा के लिए वह आज्ञाकारी वाहन बन जाता है। यह दर्शाता है कि जब इंसान अपने भीतर की शक्ति को पहचान लेता है, तो वह अपने सबसे बड़े डर और दुर्बलताओं पर नियंत्रण पा सकता है।
पौराणिक कथा: कैसे बना शेर मां दुर्गा की सवारी?
मां दुर्गा और उनके शेर की कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में उल्लेखित है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार असुर महिषासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। उसने देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया और स्वयं वहां का राजा बन बैठा। देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाकर प्रार्थना की कि वे उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाएं।तीनों देवताओं ने अपनी शक्तियों को एकत्रित कर एक दिव्य देवी की रचना की, जो शक्ति का अद्वितीय रूप थीं—वही थीं मां दुर्गा। जब देवी का निर्माण हुआ, तो सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने आयुध दिए। शेर को देवी को वाहन रूप में दिया गया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह शेर स्वयं हिमालय से आया था, जो शक्ति की पुकार पर उपस्थित हुआ और मां दुर्गा की सवारी बन गया।शेर, जो क्रूरता और आक्रोश का प्रतीक था, जब देवी दुर्गा की सेवा में आया, तो वह नियंत्रण और मर्यादा का प्रतीक बन गया। यह घटना यह संदेश देती है कि जो भी शक्ति सच्चे उद्देश्य और धर्म के लिए प्रयुक्त होती है, वह कल्याणकारी बन जाती है।
शेर का मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक अर्थ
शेर मां दुर्गा की उस शक्ति का प्रतीक है जो आत्मसंयम, संकल्प और मानसिक दृढ़ता से आती है। यह केवल एक वाहन नहीं बल्कि आत्मबल का विस्तार है। मां दुर्गा का शेर यह दर्शाता है कि जब हम अपने डर और कमजोरियों को अपने नियंत्रण में ले आते हैं, तो वे हमारी शक्ति बन जाते हैं। इसी प्रकार, देवी के अंदर बैठा हुआ शांत शेर यह संकेत देता है कि असली शक्ति नियंत्रण में है, न कि बाहरी प्रदर्शन में।शेर के माध्यम से एक और महत्वपूर्ण संदेश यह भी है कि मां दुर्गा केवल कोमलता और ममता की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वह एक योद्धा भी हैं, जो धर्म और न्याय की रक्षा के लिए युद्ध कर सकती हैं।
नवरात्रि और मां दुर्गा की सवारी
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा होती है और हर दिन उनकी विशेष शक्तियों की आराधना की जाती है। इस दौरान देवी का शेर पर आरूढ़ स्वरूप विशेष रूप से पूजनीय होता है। भक्त यह मानते हैं कि शेर पर बैठी मां दुर्गा उनके जीवन से नकारात्मकता, भय और शत्रुओं का नाश करती हैं।मंदिरों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं अक्सर शेर पर आरूढ़ दिखाई जाती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मां किसी भी परिस्थिति से मुकाबला करने की शक्ति रखती हैं। यह प्रेरणा देती है कि जीवन में कितना भी बड़ा संकट क्यों न हो, आत्मबल और आस्था से उसे पराजित किया जा सकता है।
मां दुर्गा और शेर—भय पर विजय की प्रतीक कथा
मां दुर्गा का शेर पर सवार होना यह दर्शाता है कि एक स्त्री भी उतनी ही शक्तिशाली और सक्षम हो सकती है जितना कोई योद्धा पुरुष। यह प्रतीक भारत की सांस्कृतिक परंपरा में नारी शक्ति को सर्वोच्च स्थान देने का एक प्रतीकात्मक संदेश भी है।शेर का महत्व केवल देवी की सवारी के रूप में नहीं, बल्कि आत्मविजय और आंतरिक शक्ति के रूप में समझा जाना चाहिए। यह हमें सिखाता है कि अगर हम अपने भीतर के शेर को साध लें, तो कोई भी शक्ति हमें डिगा नहीं सकती।