आखिर कब और किसने कारवाया मोती डूंगरी मंदिर का निर्माण ? 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में जाने पूरा इतिहास

राजस्थान की राजधानी जयपुर सिर्फ अपनी राजसी विरासत, किलों और महलों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर भी श्रद्धालुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका इतिहास भी उतना ही रोचक और गौरवशाली है। आइए इस लेख में जानते हैं कि मोती डूंगरी मंदिर का निर्माण कब हुआ, किसने करवाया और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व क्या है।
मंदिर की भौगोलिक स्थिति और विशेषता
मोती डूंगरी मंदिर जयपुर के केंद्र में स्थित एक पहाड़ी पर बना हुआ है, जो दूर से ही अपनी सफेद पत्थरों और खूबसूरत वास्तुशिल्प के कारण नजर आता है। यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है और इसे ‘शहर का रक्षक’ भी कहा जाता है। यहां दर्शन के लिए स्थानीय लोगों के अलावा देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं, खासकर बुधवार के दिन जब विशेष पूजा-अर्चना होती है।
कब और किसने कराया था निर्माण?
मोती डूंगरी गणेश मंदिर का निर्माण सन् 1761 में जयपुर के राजा माधोसिंह प्रथम के शासनकाल में कराया गया था। माना जाता है कि इस मंदिर में जो गणेश प्रतिमा स्थापित है, वह सन् 1761 में मवाना (उत्तर प्रदेश) से जयपुर लाई गई थी। यह प्रतिमा करीब 500 साल पुरानी है। राजा माधोसिंह उस समय भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे और उन्होंने इस प्रतिमा को जयपुर लाकर मंदिर में स्थापित कराया। यह मूर्ति एक हाथी पर सवार गणपति की दुर्लभ आकृति है, जो अत्यंत कलात्मक है।हालांकि मंदिर की वास्तुकला और किले जैसी संरचना बाद में विकसित की गई, जो स्कॉटिश और नागर शैली के संगम का सुंदर उदाहरण है। पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर एक किले जैसी संरचना के बीच स्थित है, जिसे "मोती डूंगरी फोर्ट" भी कहा जाता है।
धार्मिक महत्व और आस्था का केंद्र
मोती डूंगरी मंदिर केवल जयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिर माना जाता है। यह माना जाता है कि कोई भी शुभ कार्य या नया काम शुरू करने से पहले जयपुरवासी यहां भगवान गणेश के दर्शन करने अवश्य आते हैं। विवाह हो, व्यापार की शुरुआत हो या नया वाहन खरीदना हो—यहां दर्शन किए बिना कार्य की शुरुआत अधूरी मानी जाती है।हर बुधवार को यहां विशेष भीड़ होती है, और गणपति बप्पा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहां भव्य मेला और उत्सव का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।
वास्तुशिल्प और सौंदर्य
मंदिर की वास्तुकला बेहद सुंदर है। यह सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी नक्काशी बेमिसाल है। मंदिर की दीवारों और गुंबदों पर की गई कारीगरी राजस्थानी एवं भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत मिश्रण है। मंदिर परिसर में साफ-सफाई और शांति का विशेष ध्यान रखा गया है, जिससे यहां आने वाला हर श्रद्धालु मानसिक रूप से शांति का अनुभव करता है।
मोती डूंगरी किला और इसके रहस्य
गणेश मंदिर के ऊपर जिस पहाड़ी पर यह मंदिर बना है, वहीं एक महलनुमा किला भी स्थित है, जिसे मोती डूंगरी किला कहा जाता है। यह निजी संपत्ति है और आम जनता के लिए यह खुला नहीं होता, लेकिन बाहर से इसकी भव्यता देखते ही बनती है। यह किला भी 18वीं सदी के दौरान बनवाया गया था और यहां कभी राजा-महाराजा निवास किया करते थे।
स्थानीय जनमान्यता और किंवदंतियाँ
कहा जाता है कि जब जयपुर में इस गणेश मूर्ति की स्थापना की गई थी, तब पूरे शहर में खुशहाली और समृद्धि का दौर शुरू हुआ था। इसी कारण से भगवान गणेश को ‘जयपुर का संरक्षक देवता’ कहा जाता है। एक और मान्यता यह है कि जो भी सच्चे मन से यहां आकर मन्नत मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
उत्सव और धार्मिक कार्यक्रम
मोती डूंगरी मंदिर में वर्षभर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। खासकर गणेश चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी और बुधवार को मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। इन दिनों मंदिर को फूलों और लाइटिंग से सजाया जाता है और भव्य झांकियां निकाली जाती हैं।
मोती डूंगरी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि जयपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक भी है। इसकी स्थापत्य कला, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक आस्था इसे खास बनाते हैं। जयपुर आने वाला हर पर्यटक इस मंदिर के दर्शन किए बिना वापस नहीं जाता।यदि आप भी कभी जयपुर आएं, तो मोती डूंगरी गणेश मंदिर अवश्य जाएं—यह न केवल आपकी यात्रा को आध्यात्मिक ऊर्जा देगा, बल्कि राजस्थान की संस्कृति से भी आपको जोड़ेगा।