भारत का ऐसा मंदिर जिसके आगे बादशाह अकबर ने भी टेक दिए घुटने, आजतक नहीं सुलझा बिना ईंधन के वर्षों से जलती आ रही ज्योत का रहस्य

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वालामुखी मंदिर, जिसे ज्वाला देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर अपनी निरंतर जलती हुई ज्वालाओं के लिए प्रसिद्ध है, जो बिना किसी बाहरी ईंधन के सदियों से जल रही हैं। ज्वालामुखी मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां आस्था और विज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यहां लगातार जलती हुई ज्वालाएं जहां भक्तों के लिए देवी की उपस्थिति का प्रतीक हैं, वहीं वैज्ञानिकों के लिए यह एक प्राकृतिक रहस्य है, जिसे अभी पूरी तरह से समझा जाना बाकी है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राकृतिक विज्ञान के अध्ययन का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होने के बाद आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने उनके जले हुए शरीर को उठाकर तांडव किया। इससे ब्रह्मांड में असंतुलन पैदा हो गया, जिसे ठीक करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए। ऐसा माना जाता है कि ज्वालामुखी मंदिर उस स्थान पर स्थित है, जहां सती की जीभ गिरी थी और यहां प्रकट हुई ज्वालाएं देवी की शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने इस मंदिर की ज्वालाओं की प्रामाणिकता को परखने के लिए उन्हें बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे। इस घटना के बाद अकबर ने मंदिर में एक सोने का छत्र चढ़ाया था, जो बाद में किसी अन्य धातु में परिवर्तित हो गया। इस घटना को भक्तों के बीच देवी की शक्ति का प्रमाण माना जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, इन लगातार जलती हुई ज्वालाओं का कारण जमीन से मीथेन जैसी हाइड्रोकार्बन गैसों का रिसाव हो सकता है, जो सतह पर ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर स्वतः ही प्रज्वलित हो जाती हैं। 1959 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) ने इस क्षेत्र की खुदाई की, लेकिन उन्हें गैस या तेल के पर्याप्त स्रोत नहीं मिले। लगभग छह दशकों के शोध के बाद भी इन ज्वालाओं के स्रोत को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, जिससे यह स्थान और भी रहस्यमयी हो गया है।
मंदिर में नौ निरंतर जलती हुई ज्वालाएँ हैं, जिन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। देश-विदेश से लाखों भक्त इन ज्वालाओं की पूजा करने के लिए यहाँ आते हैं, खासकर नवरात्रि के अवसर पर, जब मंदिर में विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं।