400 साल पुराना गणेश मंदिर जहां बिना दर्शन के कोई शुभ काम शुरू नहीं होता, वीडियो में चमत्कारों की कहानियां देख निकल पड़ेंगे दर्शन करने

राजस्थान की राजधानी जयपुर सिर्फ अपनी राजसी विरासत और स्थापत्य कला के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और चमत्कारी मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। यहां स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में श्रद्धालुओं के बीच एक विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर अपने इतिहास, पौराणिक कथा, लोक मान्यता और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। गुलाबी नगरी की गोद में बसी इस धार्मिक धरोहर की यात्रा श्रद्धा और शांति का अनुभव कराती है।
मोती डूंगरी मंदिर का इतिहास
मोती डूंगरी मंदिर का निर्माण वर्ष 1761 में जयपुर के महाराजा मदो सिंह प्रथम के शासनकाल में हुआ था। मंदिर का वास्तुशिल्प नागर शैली में निर्मित है, जो उत्तर भारतीय मंदिरों की पहचान है। यह मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है, जिसे स्थानीय लोग "डूंगरी" कहते हैं। इस मंदिर का नाम इसी पहाड़ी और इसके मोती जैसे सुंदर स्वरूप के कारण पड़ा – “मोती डूंगरी”, जिसका अर्थ है “मोती जैसी पहाड़ी”।ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, इस गणेश प्रतिमा को सबसे पहले गुजरात से जयपुर लाया गया था और बाद में इसे इस पहाड़ी पर स्थापित कर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर राजा के महल ‘मोती डूंगरी फोर्ट’ के परिसर में ही आता है, जो आज भी संरक्षित स्थिति में है।
गणेश प्रतिमा और इसकी विशेषता
मोती डूंगरी मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ है। यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है, जो कि बहुत ही कम मंदिरों में देखने को मिलती है। इस दिशा की मान्यता है कि यह विशेष रूप से रक्षा और संकट निवारण के लिए शुभ होती है। यह प्रतिमा एक ही पत्थर से बनी हुई है और भगवान गणेश को यहां एक बालक के रूप में दर्शाया गया है – यानी "बाल गणेश"।
मोती डूंगरी की पौराणिक कथा
मोती डूंगरी गणेश मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा यह है कि जब भगवान गणेश की प्रतिमा गुजरात से लायी जा रही थी, तब निर्णय हुआ कि जिस स्थान पर बैलगाड़ी रुक जाएगी, वहीं मूर्ति को स्थापित किया जाएगा। जैसे ही बैलगाड़ी इस छोटी पहाड़ी पर पहुँची, वह अपने आप रुक गई और फिर वहीं पर मंदिर का निर्माण हुआ। इसे ईश्वरीय संकेत माना गया।कई भक्त यह भी मानते हैं कि यहां गणेश जी स्वयंभू रूप में प्रकट हुए थे। यह भी कहा जाता है कि यहां पूजा-अर्चना करने से विघ्न हरता गणेश सभी बाधाओं को हर लेते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
धार्मिक मान्यता और परंपराएं
यह मंदिर विवाह, नव आरंभ, परीक्षा, व्यवसाय, गृह प्रवेश या किसी भी शुभ कार्य से पहले जयपुरवासियों द्वारा सबसे पहले जाकर पूजा करने की परंपरा का केंद्र रहा है। यहां हर बुधवार और गणेश चतुर्थी के दिन विशेष भव्य पूजा-अर्चना होती है। खासकर बुधवार को हजारों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।एक अनूठी परंपरा यह है कि यहां जो भक्त पहली बार आता है, वह गणेश जी को नारियल और गुड़ चढ़ाकर अपनी मनोकामना मांगता है और जब वह पूरी हो जाती है, तो वापस आकर पुनः धन्यवाद अर्पण करता है।
मोती डूंगरी मंदिर के चमत्कार
मोती डूंगरी मंदिर से जुड़े कई चमत्कारी अनुभव भक्तों द्वारा साझा किए गए हैं। कहा जाता है कि जब भी शहर पर कोई बड़ा संकट मंडराया, भगवान गणेश ने अपने चमत्कारी रूप में उस संकट को टाल दिया। चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो, महामारी हो या सामाजिक संकट – लोग इसे "मोती डूंगरी वाले बाप्पा" की कृपा मानते हैं।स्थानीय निवासियों के अनुसार, एक समय जयपुर में भारी सूखा पड़ा था, तब कई जगह अनुष्ठान कराए गए लेकिन वर्षा नहीं हुई। जब मोती डूंगरी मंदिर में विशेष प्रार्थना और यज्ञ हुआ, तो अगले ही दिन बारिश शुरू हो गई, और सूखा समाप्त हो गया। यह घटना आज भी आस्था का मजबूत उदाहरण मानी जाती है।
स्थापत्य और आकर्षण
मंदिर की वास्तुकला और परिसर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसके गुंबद और नक़्क़ाशीदार दरवाजे, सुंदर पत्थरों की नक्काशी और विस्तृत सीढ़ियाँ इसे स्थापत्य कला का भी अनमोल उदाहरण बनाती हैं। रात्रि के समय जब मंदिर रोशनी से सजा होता है, तो यह दृश्य दर्शकों को स्वर्गिक अनुभूति कराता है।
कैसे पहुँचें
मोती डूंगरी मंदिर जयपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक बस, ऑटो या टैक्सी के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर शहर के बीचोंबीच होने के कारण यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बन चुका है।