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सुनामी-तूफान तक अलर्ट... फिर बादल फटने के आगे क्यों फेल हो जाते है वैज्ञानिक सिस्टम ? कारण जान उड़ जाएंगे होश 

सुनामी-तूफान तक अलर्ट... फिर बादल फटने के आगे क्यों फेल हो जाते है वैज्ञानिक सिस्टम ? कारण जान उड़ जाएंगे होश 

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में खीर गंगा नदी के पास मंगलवार सुबह बादल फटने से भारी तबाही मच गई। पहाड़ों से आए मलबे के साथ आए तेज सैलाब ने महज 34 सेकंड में धराली बाजार और आसपास के दर्जनों घरों को जमींदोज कर दिया। चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 50 से ज्यादा लोग लापता हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और आईटीबीपी की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि भूकंप, सुनामी और तूफान की चेतावनी देने में सक्षम मौसम विज्ञान बादल फटने की घटनाओं का सटीक अनुमान क्यों नहीं लगा पा रहा है?

उत्तराखंड का धराली गांव, जो गंगोत्री धाम के पास एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, में मंगलवार दोपहर 1:55 बजे बादल फट गया। खीर गंगा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से मलबा और पानी गांव में घुस गया, जिससे धराली बाजार और कई घर बह गए। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिख रहा है कि पानी का सैलाब इमारतों को माचिस की तीलियों की तरह बहा ले गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे 'दुखद और दर्दनाक' बताया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तुरंत राहत कार्य के लिए टीमें रवाना कीं। स्थानीय प्रशासन के अनुसार, 15-20 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं और लापता लोगों की तलाश जारी है।

बादल फटने की भविष्यवाणी में विज्ञान की सीमाएँ
बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है जिसमें 20-30 वर्ग किलोमीटर के सीमित क्षेत्र में 1 घंटे के छोटे समय में 100 मिमी से अधिक की मूसलाधार बारिश होती है। यह आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है, जब नमी से लदे मानसूनी बादल पहाड़ों से टकराकर रुक जाते हैं और गर्म और ठंडी हवाओं के मिलने से पानी की बूंदें एक साथ गिरने लगती हैं। मौसम विभाग भूकंप (भूकंपीय सेंसर), सुनामी (समुद्री सेंसर) और तूफान (उपग्रह और रडार) की भविष्यवाणी करने में सक्षम है, लेकिन बादल फटने की सटीक भविष्यवाणी कई कारणों से मुश्किल है। बादल फटने की घटनाएँ एक छोटे से क्षेत्र में और कम समय में होती हैं, जिसके लिए बहुत उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले रडार और उपग्रह डेटा की आवश्यकता होती है, जो भारत में सीमित हैं।

दूसरा
हिमालय जैसे क्षेत्रों में जटिल स्थलाकृति और स्थानीय जलवायु परिवर्तन पूर्वानुमान को और जटिल बना देते हैं।

तीसरा
मौजूदा रडार प्रणालियाँ भारी बारिश की चेतावनी दे सकती हैं, लेकिन सघन रडार नेटवर्क और डॉप्लर रडार, जो महंगे हैं, की कमी के कारण विशिष्ट स्थान और समय की सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाती हैं।

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ऐसे में, भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने धराली में भारी बारिश की चेतावनी दी थी, लेकिन बादल फटने के बारे में कोई खास जानकारी नहीं दे सका। विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाओं में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। हिमालय में गर्म हवाएँ और नमी से भरे बादल बार-बार रुक रहे हैं, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएँ बढ़ गई हैं। धराली की घटना ने स्थानीय निवासियों और पर्यटकों में दहशत फैला दी और गंगोत्री धाम का ज़िला मुख्यालय से संपर्क टूट गया।

ऐसे में, धराली में बादल फटने की घटना ने एक बार फिर मौसम विज्ञान की सीमाओं को उजागर कर दिया है। एक छोटे से क्षेत्र में तीव्र वर्षा की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए उन्नत तकनीक और निवेश की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी तबाही को कम किया जा सके। धराली की त्रासदी न केवल स्थानीय निवासियों, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि प्रकृति के कहर से बचने के लिए विज्ञान और नीतियों में सुधार आवश्यक है।

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