उत्पादों पर लगाये जाने वाले स्टीकर, पर्यावरण के लिये खतरनाक साबित हो रहे हैं
आमतौर पर उत्पादों पर उनकी गुणवत्ता से संबंधित स्टीकर लगाकर ऊंचे दामों पर बेचा जाता है। फलों के मामलों में यह टैग बड़ी मात्रा में लगे हुये देखे जा सकते हैं। चाहे सेब हो या केला सब पर ये स्टीकर लगे देखे जा सकते हैं।
इन स्टीकरों से यह जताया जाता है कि आप जो फल खरीद रहे हैं, वो सामान्य क्वालिटी से कहीं बढ़कर बहुत ही उच्च क्वालिटी के हैं। कई बार ये स्टीकर हटते नहीं हैं और इन पर लगा प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है।
इन स्टीकर्स के लगते ही उस उत्पाद ही कीमत पहले से कई गुना ज्यादा निर्धारित कर दी जाती है। इन स्टीकर्स को लेकर सरकार द्वारा कोई गाइडलाइन तय नहीं की गई है। इस वज़ह से फल विक्रेता स्टेशनरी में काम में आने वाले सामान्य स्टीकर का उपयोग कर लेते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार उपभोक्ता इन स्टीकर्स को कई बार पूरी तरह से नहीं हटा पाता है, और उसका कुछ अंश पेट में चला जाता है। यह बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।
हाल ही में डेनमार्क की कंपनी नेचर एंड मोर ने ऐसे स्टीकर्स की जगह लेजर मार्क का प्रयोग करना आरंभ किया है। यह तकनीक नेचुरल ब्रांडिंग कहलाती है। यह लेजर का निशान ना तो उस उत्पाद की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, और ना ही हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। यह नई तकनीक प्लास्टिक स्टीकर्स को हटाने के साथ ही पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है। स्वीडन के आईसीए सुपरमार्केट में भी ऐसे स्टीकर्स को हटाकर लेजर मार्क का उपयोग किया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस नेचुरल टैग तकनीक से हर साल 135 मील लंबी प्लास्टिक शीट जितना प्लास्टिक कम किया जा सकता है। यानि एक सेंटीमीटर आकार के ये बेहद छोटे स्टीकर विशाल मात्रा होने पर पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस तकनीक में सबसे बड़ी समस्या महंगी लेजर मशीन की स्थापना को लेकर माना जा रहा है। क्योंकि मशीन की कीमत बहुत ज्यादा होने से यह लेजर स्टीकर शुल्क उपभोक्ताओं की जेब से वसूला जायेगा। आने वाले समय में लेजर तकनीक के सस्ते होने पर ही यह नेचुरल ब्रांडिंग तकनीक व्यापक स्तर पर प्लास्टिक के ज़हरीले स्टीकर्स को रिप्लेस कर पायेगी।
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