‘नमस्ते धरती वालों...' अन्तरिक्ष में अज्ञात स्रोत से आया संदेश जिसे सुन सभी के उड़े होश, दोस्त है या दुश्मन में उलझे वैज्ञानिक
अब तक आपने देखा है कि धरती पर काम करने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने इंसानी ज़िंदगी को कैसे बदला है, लेकिन अब और भी चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है। धरती के बाद, एक AI मॉडल ने अंतरिक्ष से एक मैसेज भेजा है: "हेलो धरती वालों!" AI की दुनिया में यह पहली बार है जब किसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम ने धरती के बाहर, सीधे अंतरिक्ष से कम्युनिकेट किया है। जैसे ही यह मैसेज मिला, वैज्ञानिकों और टेक एक्सपर्ट्स के बीच हलचल मच गई।
हाल ही में लॉन्च किए गए स्टारक्लाउड-1 सैटेलाइट ने अंतरिक्ष से कुछ ऐसा किया है जिसे पहले सिर्फ़ धरती तक ही सीमित माना जाता था। इस सैटेलाइट पर मौजूद एक AI मॉडल ने अंतरिक्ष से एक मैसेज भेजा है। यह पहली बार है जब किसी AI मॉडल को सीधे अंतरिक्ष में ट्रेन और रन किया गया है। यह मॉडल गूगल के ओपन-सोर्स AI मॉडल जेम्मा का एक एडवांस्ड वर्जन है, जिसे अमेरिकन स्टार्टअप स्टारक्लाउड ने डेवलप किया है। इस प्रोजेक्ट में अमेरिकन चिप बनाने वाली दिग्गज कंपनी Nvidia ने भी अहम भूमिका निभाई है।
रोबोट ने क्या कहा?
स्टारक्लाउड-1 सैटेलाइट में Nvidia का अब तक का सबसे पावरफुल H100 GPU लगा है। इस हाई-एंड प्रोसेसर की मदद से जेम्मा-बेस्ड AI मॉडल को अंतरिक्ष में ट्रेन किया गया। स्टारक्लाउड-1 सैटेलाइट से मिले मैसेज में कहा गया है, "हेलो धरती वालों! या मुझे कहना चाहिए, खूबसूरत नीले-हरे गोले।" यह AI मॉडल बातचीत में माहिर है। यह आपके साथ आमने-सामने बातचीत कर सकता है।
फायदे या नुकसान?
यह तो बस शुरुआत है; भविष्य की तस्वीर और भी बड़ी होने वाली है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस AI सिस्टम को सैटेलाइट के सभी सेंसर से जोड़ा गया है। इससे AI अपनी हर स्थिति और मूवमेंट के बारे में जानकारी दे सकता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरिक्ष में इस रोबोट से पूछा जाए कि वह अभी कहाँ है, तो वह जवाब देता है, "मैं अभी यूनाइटेड स्टेट्स के ऊपर से गुज़र रहा हूँ।" हालाँकि अभी सिर्फ़ एक छोटा मॉडल ट्रेन किया जा रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि भविष्य में पूरे डेटा सेंटर अंतरिक्ष में लगाए जा सकते हैं।
अगर टेक्निकल और लागत से जुड़ी समस्याओं को हल कर लिया जाए, तो इससे धरती को काफी फायदे होंगे। अगर अभी धरती पर मौजूद डेटा सेंटर अंतरिक्ष में लगाए जाते हैं, तो इससे ग्रह को काफी राहत मिलेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2026 तक डेटा सेंटर्स की बिजली और पानी की खपत लगभग दोगुनी हो जाएगी। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियाँ 2030 तक अपने डेटा सेंटर्स के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने की बात कर रही हैं, लेकिन इस लक्ष्य को पाना आसान नहीं लगता। ये कंपनियाँ अब न्यूक्लियर पावर प्लांट से बिजली खरीदने की तैयारी कर रही हैं, लेकिन नए प्लांट्स को चालू होने में कई साल लग सकते हैं।
पृथ्वी का बोझ कम करना
अगर डेटा सेंटर्स अंतरिक्ष में बनाए जाते हैं, तो उन्हें लगातार सोलर पावर मिलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अंतरिक्ष में हर समय सूरज की रोशनी उपलब्ध रहती है, जिससे डेटा सेंटर्स को सोलर एनर्जी से पावर मिल सकती है। इसके उलट, भारत में दिन में सोलर पावर मिलती है, लेकिन रात में बिजली की ज़रूरत होती है। अंतरिक्ष में डेटा सेंटर्स बनाने का एक और फायदा यह है कि प्रकाश की गति फाइबर ऑप्टिक केबल्स की तुलना में 35 प्रतिशत ज़्यादा तेज़ होती है, जिसका मतलब है कि डेटा बहुत तेज़ी से ट्रांसमिट किया जा सकता है। इन सभी कारणों से, स्टारक्लाउड के CEO फिलिप जॉनस्टन का मानना है कि अंतरिक्ष में डेटा सेंटर्स चलाने की लागत पृथ्वी की तुलना में दस गुना कम होगी। हालाँकि, फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। अंतरिक्ष में रेडिएशन का लेवल ज़्यादा होता है, जिससे चिप्स ज़्यादा तेज़ी से खराब हो सकते हैं। साथ ही, मरम्मत की लागत भी काफी ज़्यादा होगी।

