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भारत में है दुनिया का सबसे मजबूत पुल, खुद कर लेता है अपनी मरम्‍मत, वर्ल्‍ड हेरिटेज साइट्स में है शामिल

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विज्ञान न्यूज़ डेस्क - दुनियाभर में कई ऐसे विशाल, बेहतरीन और मजबूत ब्रिज हैं, जिन्हें इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल के तौर पर देखा जाता है। मुंबई का सी-लिंक, सिडनी का टावर ब्रिज या भारत में दुनिया का सबसे ऊंचा चनाब आर्च ब्रिज कुछ ऐसे अनोखे ब्रिज हैं, जिन्हें देखकर लोग तारीफों के पुल बांधते हैं। कुछ पुल दो शहरों को जोड़ते हैं, जबकि कुछ एक ही शहर के दो हिस्सों को जोड़ते हैं। वहीं, कुछ पुल ऐसे भी हैं जो दो देशों को जोड़ते हैं। आपने कई पुल देखे होंगे, लेकिन अगर आपसे पूछा जाए कि क्या आपने कभी जीवित पेड़ की जड़ों से बना पुल देखा है, तो ज्यादातर लोगों का जवाब होगा नहीं। हम बता रहे हैं कि भारत में यह ब्रिज कहां है? इसे कैसे और किसने बनाया?

जीवित पेड़ों की जड़ों से बने पुल में ऐसा क्या खास है कि इसे दुनिया का सबसे मजबूत पुल माना जाता है। दरअसल भारत के उत्तरपूर्वी राज्य मेघालय में बने इस ब्रिज के सामने दुनिया के कई ब्रिज आपको फीके लगने लगेंगे। बताया जाता है कि इस पुल का निर्माण करीब 200 साल पहले हुआ था। जीवित वृक्षों की जड़ों की तरह बना यह अनूठा पुल आज भी उतनी ही मजबूती से खड़ा है, जितना अपने निर्माण के समय था। यह पुल पेड़ों की जीवित जड़ों को आपस में एक धागे की तरह बुनकर बनाया गया है।

अगर आप सोच रहे हैं कि इस अनोखे पुल को बनाने में बड़े-बड़े इंजीनियरों और वनस्पति विज्ञानियों ने दिमाग लगाया होगा तो आप गलत हैं। मेघालय में सदियों से रह रही खासी और जैंतिया जनजाति के लोग जीवित पेड़ों की जड़ों से पुल बनाने में माहिर माने जाते हैं। कहा जाता है कि खासी और जैंतिया जनजाति के लोगों ने कई सौ साल पहले लिविंग रूट ब्रिज का निर्माण किया था। इस ब्रिज पर एक साथ 50 लोग चल सकते हैं। यह ब्रिज मेघालय के घने जंगलों से होकर गुजरने वाली एक नदी के ऊपर बना है।

लिविंग रूट ब्रिज जीवित पेड़ की जड़ों से बना है। इसे एक धागे की तरह आपस में गूंथकर बनाया जाता है। उसका कुछ भाग लगातार पानी में रहने के कारण सड़ जाता है या गल जाता है तो उस स्थान पर नई जड़ें आ जाती हैं। इसलिए यह पुल 200 साल बाद भी कहीं से कमजोर नहीं हुआ है। यह ब्रिज रबड़ के पेड़ की जड़ों से बना है, जिसे फाइकस इलास्टिका ट्री कहा जाता है। इन पुलों में कुछ जड़ों की लंबाई 100 फीट तक है। इन्हें सही आकार लेने में 15 साल तक का समय लग जाता है। जब ये जड़ें पूरी तरह विकसित हो जाती हैं तो ये 500 साल तक मजबूत रह सकती हैं।

मेघालय में ऐसे कई पुल हैं। इनमें पेड़ की जड़ों से बना चेरापूंजी का डबल डेकर ब्रिज सबसे खास है। इसमें एक के ऊपर एक दो पुल बनाए गए हैं। इन पुलों को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया है। जीवित वृक्षों की जीवित जड़ों से बने ये पुल लोहे के पुलों से अधिक मजबूत माने जाते हैं। जहां लोहे या स्टील के पुलों को समय-समय पर मरम्मत की आवश्यकता होती है। वहीं, ये पुल खुद की मरम्मत करते हैं। इन पुलों के बनने से जंगलों में रहने वाले लोगों के लिए नदियों को पार करना बहुत आसान हो जाता है।

खासी और जयंतिया आदिवासी समुदाय के लोग सदियों से इन पैदल पुलों को बनाने में लगे हुए हैं। इन लोगों के लिए अब पेड़ों की जीवित जड़ों से बने ये खास पुल भी तगड़ी आमदनी का जरिया बन गए हैं। दरअसल वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल होने के बाद दुनिया भर से लोग मेघालय के जंगलों में इन्हें देखने के लिए पहुंचने लगे हैं। हालांकि इससे पहले भी इन पुलों को देखने के लिए भारत के विभिन्न प्रांतों से पर्यटक पहुंचते थे। अब स्थानीय लोगों ने अपने घरों को होम स्टे में बदलना शुरू कर दिया है। इससे यहां आने वाले लोगों को रहने का इंतजाम करने के झंझट से मुक्ति मिल जाती है और इसके बदले में स्थानीय लोगों को अच्छी आमदनी हो जाती है।

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