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मोदी सरकार SIR पर जवाब देने को तैयार लेकिन संसद की कार्यवाही में क्यों नहीं दिख रही गंभीरता ? यहां जाने 3 बड़े कारण 

मोदी सरकार SIR पर जवाब देने को तैयार लेकिन संसद की कार्यवाही में क्यों नहीं दिख रही गंभीरता ? यहां जाने 3 बड़े कारण 

बिहार में एसआईआर को लेकर विपक्ष पटना से दिल्ली तक सरकार के खिलाफ पूरी तरह लामबंद है। विपक्ष की मांग है कि इस मामले पर सदन में चर्चा हो। सरकारी सूत्रों की मानें तो सरकार सदन में एसआईआर पर चर्चा नहीं करेगी। इसके तीन प्रमुख कारण सामने आए हैं।

जानकारी के अनुसार, कल लोकसभा में एसआईआर के मुद्दे पर जमकर विरोध हुआ, जिसके कारण ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा देर से शुरू हुई। विपक्ष सरकार से यह आश्वासन चाहता था कि वह ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा समाप्त होने के बाद बिहार में एसआईआर पर चर्चा करेगी। हालाँकि, बाद में संसदीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि अगर नियम इसकी इजाजत देते हैं और बीएसी में कोई फैसला हो जाता है, तो सरकार किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार है। सरकारी सूत्रों की मानें तो सदन में एसआईआर पर चर्चा नहीं हो सकती। इसके पीछे तीन कारण हैं।

पहला - केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा उठाया जा रहा कदम कोई नई बात नहीं है। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। यह अभियान कोई जरूरी चुनाव सुधार नहीं है। यह एक प्रशासनिक कदम है।

दूसरा- अगर एसआईआर के मुद्दे पर चर्चा होती है, तो चुनाव आयोग का पक्ष रखने वाला सदन में कोई नहीं होता। ऐसे में सदन में इस पर चर्चा संभव नहीं है। चुनाव आयोग अपना पक्ष रखने सदन में नहीं आ सकता। हालाँकि कानून मंत्रालय आयोग का नोडल मंत्रालय है, लेकिन वह केवल प्रशासनिक कार्य देखता है।

तीसरा- कई संस्थाएँ ऐसी हैं जो संसद के समक्ष अपना पक्ष नहीं रख सकतीं। ऐसे में उन संस्थाओं पर चर्चा नहीं हो सकती। सरकार इसके लिए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के बयान को आधार बना रही है। जाखड़ ने 1986 में कहा था कि व्यापक चुनाव सुधारों पर चर्चा की माँग पर संसद में चर्चा हो सकती है, लेकिन प्रशासनिक प्रक्रियाओं और निर्णयों पर चर्चा संभव नहीं है।

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