वीडियो में देखे संजय निरुपम का संजय राऊत पर करारा पलटवार, बोले - ‘हिंदी भाषी अपमान बर्दाश्त नहीं’
शिवसेना (उद्धव गुट) के वरिष्ठ नेता संजय राऊत और पूर्व सांसद संजय निरुपम के बीच जुबानी जंग ने पार्टी के भीतर भाषा विवाद को हवा दे दी है। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल शिवसेना में मतभेद उजागर कर दिए हैं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक नया विमर्श छेड़ दिया है – मराठी बनाम हिंदी भाषा का सवाल।विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब संजय राऊत ने एक सार्वजनिक मंच से हिंदी भाषा को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि “मराठी अस्मिता के सामने हिंदी का दिखावा नहीं चलेगा।” उन्होंने इशारों-इशारों में उन नेताओं को निशाने पर लिया जो हिंदी भाषी समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद संजय निरुपम ने पलटवार करते हुए कहा कि, “मराठी अस्मिता का सम्मान हर कोई करता है, लेकिन महाराष्ट्र में हिंदी भाषी समुदाय को अपमानित करना कोई राष्ट्रवादी विचार नहीं है। शिवसेना को अब तय करना होगा कि वह सभी भाषाओं और वर्गों का सम्मान करेगी या सिर्फ वोटबैंक की राजनीति करेगी।”
संजय निरुपम का यह बयान राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा गया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भाषा के नाम पर लोगों को बांटना शिवसेना की पुरानी रणनीति रही है, लेकिन अब समय बदल चुका है। “आज का महाराष्ट्र विविधताओं को साथ लेकर चलता है, यहां उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय, गुजराती और मराठी – सभी एक साथ रहते हैं। किसी एक भाषा को श्रेष्ठ और दूसरी को तुच्छ बताना केवल ओछी राजनीति है,” निरुपम ने कहा।
इस बयान के जवाब में संजय राऊत ने फिर से मोर्चा संभाला और कहा कि शिवसेना ने हमेशा मराठी मानुष के हितों की रक्षा की है और आगे भी करती रहेगी। राऊत ने दावा किया कि कुछ लोग पार्टी की विचारधारा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद आगामी मुंबई महानगरपालिका चुनावों से ठीक पहले उभरकर सामने आया है, जहां उत्तर भारतीय वोट बैंक अहम भूमिका निभाता है। शिवसेना में पहले से ही दो गुट – उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे – के बीच टकराव चल रहा है, और अब यह भाषा विवाद पार्टी के अंदर नए तनाव को जन्म दे सकता है।
कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में आए संजय निरुपम पार्टी में हिंदी भाषी चेहरा माने जाते हैं। वहीं संजय राऊत शिवसेना के मराठी राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रमुख प्रवक्ता हैं। दोनों नेताओं की बयानबाजी से यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी के भीतर विचारधारा और रणनीति को लेकर एकराय नहीं है।

