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जस्टिस वर्मा और कॉलेजियम विवाद: धनखड़–रिजिजू की कुर्सी गई तो क्या भविष्य में कौन बनेगा अगला ‘संवैधानिक सवालिया निशान

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उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद देश की सियासत गरमा गई है. विपक्षी दल ही नहीं सत्तापक्ष के नेता भी हैरान हैं. धनखड़ ने अपनी इस्तीफे की वजह अपने स्वास्थ्य कारणों को बताया है, लेकिन यह बात किसी को हजम नहीं हो रही. जगदीप धनखड़ 11 दिन पहले तक अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने की बात रहे थे, आखिर क्या हुआ कि उन्होंने दो साल पहले ही कुर्सी छोड़ दी. मॉनसून सत्र के पहले दिन जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही शुरू कराई और सदन को संबोधित किया. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को जन्मदिन की बधाई दी, लेकिन देर शाम उन्होंने इस्तीफा का ऐलान कर दिया. इसकी वजह जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष के द्वारा लाए गए महाभियोग के प्रस्ताव को नोटिस में लेने माना जा रहा है, लेकिन असल कारण सिर्फ विपक्ष के प्रस्ताव को नोटिस पर लेने का नहीं है बल्कि बात इससे कहीं आगे की है. 

मोदी सरकार ने जरूर जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संसद के दोनों ही सदनों में महाभियोग के प्रस्ताव पेश करने की योजना बनाई थी. इसके लिए सरकार ने विपक्ष से भी बातचीत कर रखा था और राहुल गांधी ने भी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए थे. ऐसे में विपक्ष के प्रस्ताव को राज्यसभा में नोटिस पर लेकर जरूर बीजेपी को नाराज कर दिया है, लेकिन वजह जगदीप धनखड़ का ज्यूडिशियरी से पंगा लेना था. धनखड़ से पहले किरेन रिजिजू की कानून मंत्री की कुर्सी ज्यूडिशियरी के साथ टकराने के चलते जा चुकी है. देश के उपराष्ट्रपति जैसे पद से इस्तीफा देने की वजह सामान्य नहीं है, बल्कि जगदीप धनखड़ को लेकर बीजेपी का मन बदलने की वजह बड़ी है. धनखड़ साल 2022 में भारत के उपराष्ट्रपति बने थे. इसके बाद से लगातार चर्चा में बने हुए. हैं. जस्टिस यशवंत वर्मा का मामले प्रकाश में आने के बाद धनखड़ एनजीएसी जैसी संस्था को बहाल करने के लिए मोर्चा खोले हुए थे. वहीं, मोदी सरकार स्पष्ट रूप से एनजेएसी जैसे किसी कदम से न्यायपालिका को नाराज करने के मूड में नहीं थी. इसके चलते  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों एक चैनल के कार्यक्रम में साफ तौर पर कहा था कि सरकार का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है. इसके बाद भी जगदीप धनखड़ के इस मुद्दे पर लगातार सार्वजनिक बयान दे रहे थे, जिसके चलते मैसेज यह जाने लगा कि सरकार का संदेश है. 

धनखड़ के बयान, सरकार की चिंता

न्यायपालिका को लेकर पिछले कुछ समय से धनखड़ ने जिस तरह की टिप्पणियां कर रहे थे, उसके चलते प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं.  संवैधानिक पद पर बैठने वाले किसी भी व्यक्ति ने अभी तक इस तर खुला पंगा न्यायपालिका से नहीं लिया था. कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल हो या लोकतंत्र में संसद की 'सर्वोच्चता' की, उन्होंने अपने विचार खुलकर जाहिर किए. धनखड़ के बयानों पर सरकार को जवाब देना महंगा पड़ रहा था.धनखड़ ने न्यायपालिका पर सबसे बड़ा सवाल उठाया है, वह है आर्टिकल 142 का प्रयोग, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ 'न्यूक्लियर मिसाइल' तक बता दिया. वह राष्ट्रपति और राज्यपालों को फैसला लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समय-सीमा तय करने के फैसले पर बहुत ही ज्यादा असहज थे.

धनखड़ को देना पड़ा इस्तीफा

दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कैश बरामद हुए. इसके बाद कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने कॉलोजियम सिस्टम पर निशाना साध दिया. राज्यसभा में सोमवार को विपक्ष की ओर से जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की शुरुआत वाला प्रस्ताव लाया गया तो धनखड़ ने उसे मंजूर करने में जरा भी देरी नहीं लगाई जबकि सरकार लोकसभा में इस तरह के प्रस्ताव लाने की तैयारी ही कर रही थी. धनखड़ के इस तेवर से सरकार नाराज हई और बात उनके इस्तीफे तक चली गई. मॉनसून सत्र जिस दिन शुरू हुआ, संयोग से उसके एक ही दिन बाद  22 जुलाई, 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के उन 14 सवालों पर सुनवाई करने वाला है, जो आर्टिकल 142 के तहत उसके फैसले के लिए समय-सीमा तय करने के न्यायपालिका के निर्णय को लेकर उन्होंने पूछे हैं. उससे पहले यशवंत वर्मा के महाभियोग को राज्यसभा में धनखड़ ने स्वीकार कर लिया, जिसके चलते मामला काफी बढ़ गया. सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 142 की सुनवाई की तारीख की पूर्व संध्या पर ही जगदीप धनखड़ ने अपना पद छोड़ा है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह से असहमत थे. माना जा रहा है कि सरकार किसी तरह से न्यायपालिका से साथ टकराव बनाकर नहीं चल सकती है. इसके चलते ही अमित शाह कहते रहे हैं कि उनकी मंशा एनजेएसी जैसे कुछ लाने का नहीं है. 

किरण रिजीजू भी गंवा चुके कुर्सी

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में रविशंकर प्रसाद के बाद किरण रिजिजू को कानून मंत्री बनाया गया था. कानून मंत्री बनने के साथ ही किरेन रिजिजू ने न्यायपालिका की आलोचना कर सरकार के सामने मुसीबत खड़ी दी धी. चाहों हो जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम का मुद्दा हो या फिर पूर्व जजों की एक्टिविस्ट के साथ सक्रियता का हो. इस तरह से एक बाद एक बयान देकर किरण रिजीजू न्यायपालिका के साथ खुला पंगा ले लिया था.

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