अभिषेक बनर्जी ने पहलगाम हमले को लेकर केंद्र पर बोला हमला, मोदी सरकार पर दागे 5 तीखे सवाल

अभिषेक बनर्जी ने केंद्र की भाजपा सरकार पर बहुत ही नपा-तुला हमला बोला है। पहलगाम हमले के मुद्दे पर सरकार को घेरने का स्ट्राइक रेट कांग्रेस या विपक्षी खेमे के नेताओं से अलग हो सकता है, लेकिन हमला बिल्कुल सटीक लग रहा है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी भी सरकार की ओर से विदेश दौरे पर भेजे गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, लेकिन लौटने के बाद वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को घेरने और सवाल पूछने वाले पहले नेता हैं। संभव है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने पर ऐसे सवाल पूछने की सोच रहे हों, लेकिन अभिषेक बनर्जी सोशल साइट एक्स पर सवाल पूछकर एक कदम आगे निकल गए हैं। यह जरूर सच है कि संसद सत्र के दौरान सवाल और जवाब का बिल्कुल अलग मतलब होता है। ऐसा भी नहीं है कि अभिषेक बनर्जी द्वारा पूछे गए सवाल संसद में दोबारा नहीं पूछे जा सकते - लेकिन, फिलहाल तो बाजी टीएमसी सांसद के हाथ में ही लगती है।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने हमला किया था। करीब दो महीने हो गए हैं, ऑपरेशन सिंदूर भी चल रहा है। सीजफायर तो हो गया है, लेकिन हमलावर आतंकी कहां चले गए, यह भी अभिषेक बनर्जी ने पूछा है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच तीखी नोकझोंक हो चुकी है और अब अभिषेक बनर्जी कह रहे हैं कि 140 करोड़ भारतीयों की भावनाओं के साथ समझौता किया गया है और यह बहुत गंभीर मामला है। अभिषेक बनर्जी ने कहा है, मैं एक जिम्मेदार नागरिक और जनप्रतिनिधि होने के नाते यह सवाल उठा रहा हूं, क्योंकि यह मुद्दा देश की सुरक्षा और लोगों की जान से जुड़ा है।
टीएमसी सांसद के सरकार से 5 सवाल
डायमंड हार्बर लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी ने सोशल मीडिया पर लिखा है, पहलगाम आतंकी हमले को 55 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। यह बहुत चिंताजनक है कि एक लोकतांत्रिक देश में न तो मुख्यधारा के मीडिया, न ही विपक्ष के जनप्रतिनिधि और न ही न्यायपालिका ने सरकार के सामने ये पांच बेहद अहम सवाल उठाए हैं।
1. अभिषेक बनर्जी ने मोदी सरकार से पूछा है कि चार आतंकवादी घुसपैठ करके 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या कैसे कर पाए - राष्ट्रीय सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक के लिए कौन जिम्मेदार है?
2. अगर यह खुफिया विफलता थी, तो हमले के एक महीने बाद ही आईबी प्रमुख को एक साल का सेवा विस्तार क्यों दिया गया? उन्हें जिम्मेदार ठहराने के बजाय उन्हें पुरस्कृत क्यों किया गया? क्या मजबूरी है? खुद को पेगासस का शिकार बताते हुए अभिषेक बनर्जी ने पूछा है कि अगर सरकार विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और यहां तक कि जजों के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल कर सकती है, तो उसे आतंकवादी नेटवर्क और संदिग्धों के खिलाफ उसी उपकरण का इस्तेमाल करने से कौन रोक रहा है?
3. लोगों से उनका धर्म पूछकर क्रूर नरसंहार करने वाले चार आतंकवादी कहां हैं? क्या वे मारे गए हैं या वे जीवित हैं? अगर वे मारे गए हैं, तो सरकार ने अब तक क्यों नहीं बताया? और अगर वे आतंकवादी जीवित हैं, तो वह चुप्पी क्यों साधे हुए है?
4. भारत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओजेके) को कब वापस लेगा? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे पर सरकार ने आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी कि भारत को व्यापार के वादे के साथ युद्ध विराम के लिए राजी किया गया था? ऐसा समझौता क्यों किया गया?
5. पहलगाम हमले के बाद पिछले एक महीने के भीतर भारत ने दुनिया के 33 देशों से संपर्क किया - ऐसे कितने देशों ने भारत का खुलकर समर्थन किया?
अभिषेक बनर्जी कहते हैं, अगर हम वाकई विश्वगुरु हैं और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, तो पहलगाम हमले के तुरंत बाद आईएमएफ और विश्व बैंक ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर और 40 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता कैसे मंजूर कर दी? और सबसे चौंकाने वाली बात, अभिषेक बनर्जी कहते हैं, यह है कि पहलगाम हमले के एक महीने के भीतर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति का उपाध्यक्ष कैसे बना दिया गया?
सरकार और विपक्ष साथ-साथ, लेकिन दो कदम आगे
पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर तक पूरा विपक्ष सरकार के साथ था, लेकिन जब अमेरिका से युद्ध विराम की खबर आई, तो सवाल उठने लगे। केंद्र सरकार ने यह जरूर कहा कि संघर्ष विराम का फैसला किसी बाहरी या तीसरे पक्ष के दबाव में नहीं लिया गया, बल्कि पाकिस्तान के अनुरोध पर मंजूरी दी गई - लेकिन पूरा विपक्ष सरकार के इस रवैये को पचा नहीं पाया। अभिषेक बनर्जी ने भी अपने पोस्ट में इस सवाल को शामिल किया है। जिस तरह भारत ब्लॉक में नेतृत्व के लिए राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच होड़ लगी हुई है, वैसा ही पहलगाम और संघर्ष विराम के मामले में भी देखने को मिल रहा है। जिस तरह कांग्रेस ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर को शामिल करने पर मोदी सरकार पर हमला बोला, उसी तरह तृणमूल कांग्रेस ने भी इरफान पठान के मामले में ऐसी ही आपत्ति जताई।