भक्त जरूर जान लें शिव श्रृंगार के इन प्रतीकों को
महाशिवरात्रि का पर्व देवों के देव महादेव का दिन होता हैं इस दिन शिव भक्ता व्रत उपवास कर भोलेनाथ की पूजा करते हैं शिव ऐसे देव हैं जो श्रद्धा भक्ति के साथ की गई आराधना से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और जिनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं शिव का श्रृंगार अन्य देवताओं की तुलना में सबसे निराला होता हैं। जो अपनी अलग अलग प्रकृति को भी दर्शाता हैं वही पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शिव के हर आभूषण का विशेष महत्व होता हैं तो आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
बता दें कि शिव का प्रथम श्रृंगार गंगा को माना जाता हैं शिवजी के गांगेय, गंगेश्वर, गंगाधिपति, गंगेश्वरनाथ आदि नाम पुनीत गंगा को धारण करने के कारण ही हैं। पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए जब गंगा जी को स्वर्ग से उतारा गया तो पृथ्वी की क्षमता गंगा के आवेग को सहने में असमर्थ थी। ऐसे में शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को स्थान दिया। वही चन्द्रमा को भगवान शिव का मुकुट कहा जाता हैं शिवजी के त्रिनेत्रों में एक सूर्य, एक अग्नि और एक चंद्र तत्व से निर्मित हैं चंद्र आभा, प्रज्जवल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता हैं जो मन के शुभ विचारों के माध्यम से उत्पन्न होते हैं। भगवान भोलेनाथ के श्रृंगार में त्रिशूल का विशिष्ट स्थान होता हैं त्रिशूल के तीन शूल क्रमश सत, रज और तम गुण से प्रभावित भूत, भविष्य और वर्तमान का द्योतक हैं। भोलेनाथ अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं भस्म से नश्वरता का स्मरण होता हैं।