पत्नी की अदला-बदली, रेप और गैंगरेप के आरोप, हाईकोर्ट ने कहा- जमानत देना सही नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसे चौंकाने वाले और गंभीर मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिस पर अपनी पत्नी की अदला-बदली, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और साइबर शोषण जैसे संगीन आरोप लगे हैं। इन आरोपों को आरोपी की पत्नी ने ही दर्ज करवाया था। न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने आरोपी निकुंद कुमार झा की जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला बेहद संवेदनशील और गंभीर है, जिसमें कई स्तरों पर हिंसा और उत्पीड़न शामिल है।
क्या है मामला?
निकुंद कुमार झा पर उत्तरी दिल्ली के केएन काटजू मार्ग पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर के तहत भारतीय दंड संहिता (IPC) और पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज है। पत्नी ने अपनी शिकायत में बताया कि निकुंद न केवल मानसिक और शारीरिक क्रूरता करता था, बल्कि उसने उसका यौन शोषण, सामूहिक बलात्कार और यहां तक कि पत्नी की अदला-बदली की भी कोशिश की। एफआईआर के अनुसार, आरोपी ने पत्नी को जबरन एक होटल ले जाकर अपने दोस्तों के हवाले कर दिया, जहां उसके साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की कोशिश की गई। किसी तरह वहां से जान बचाकर निकली पीड़िता ने पूरा मामला पुलिस को बताया।
पत्नी की गंभीर शिकायतें
पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि उसका देवर भी उसे गलत तरीके से छूता था, जिसकी शिकायत जब उसने अपने पति निकुंद से की तो उसने इसे अनदेखा कर दिया और बार-बार चुप रहने को कहा। इसके बाद, पति ने उस पर मानसिक दबाव बनाना शुरू किया। एक बार तो आरोपी ने ब्लेड से उसके हाथों को घायल किया और घायल हाथों से उसे रसोई का काम करने के लिए मजबूर किया। इसी डर और दबाव के चलते वह अदला-बदली जैसी अमानवीय बात के लिए मजबूर हुई। आरोपी ने उसकी फर्जी सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाकर, उस पर उसकी निजी तस्वीरें अपलोड कर दीं और लोगों को उससे पैसे देकर यौन संबंध बनाने के लिए उकसाया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि आरोपी ने पहले अग्रिम जमानत मिलने के बाद भी पीड़िता से संपर्क किया, और फर्जी नाम से नया सिम कार्ड लेकर उसे टेक्स्ट मैसेज किए। लेकिन जांच में पता चला कि वह सिम कार्ड उसी के नाम पर पंजीकृत था। कोर्ट ने कहा कि यह व्यवहार जमानत की शर्तों का खुला उल्लंघन है और यह दिखाता है कि आरोपी जमानत पर रिहा होने के बाद भी पीड़िता को प्रभावित या डराने की कोशिश कर रहा था। अवकाश पीठ ने कहा, “इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अदालत आरोपी को जमानत पर रिहा करना उचित नहीं समझती। आरोप अत्यंत गंभीर हैं और जमानत मिलने की स्थिति में आरोपी जांच या पीड़िता को प्रभावित कर सकता है।”
आरोपी की दलीलें और अभियोजन का जवाब
आरोपी के वकील अनिल कुमार मिश्रा ने कोर्ट में तर्क दिया कि पूरा मामला वैवाहिक विवाद से जुड़ा हुआ है और झूठे आरोपों के तहत उसे फंसाया गया है। वहीं अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) अमन उस्मान ने बताया कि आरोपी ने न केवल अपनी जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया बल्कि पीड़िता की निजता और मानसिक स्थिति पर भी गंभीर आघात पहुंचाया है।
राजनीतिक और सामाजिक संदेश
यह मामला केवल एक वैवाहिक विवाद नहीं, बल्कि एक गंभीर आपराधिक मामला है जो महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। कोर्ट का यह फैसला यह भी संदेश देता है कि घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और साइबर अपराध को हल्के में नहीं लिया जाएगा।

