कौन हैं बहादुर शाह जफर? कवियों और पुत्रों के सिर की बलि देने वाले शहंशाह को विद्रोहियों ने अपना नेता चुना

जब से फिल्म 'छावा' रिलीज हुई है, तब से देशभर में मुगल शासक औरंगजेब को लेकर विवाद चल रहा है। महाराष्ट्र में औरंगजेब की मजार हटाने पर हिंदू संगठन अड़े हुए हैं। औरंगजेब को लेकर चल रहे विवाद के बीच गाजियाबाद में एक अलग नजारा देखने को मिला। हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने यहां रेलवे स्टेशन पर लगी बहादुर शाह जफर की तस्वीर पर कालिख पोत दी। उन्हें लगा कि यह फोटो औरंगजेब की है। बहरहाल, आरपीएफ ने उसके कृत्य पर मामला दर्ज कर लिया है और आरोपी की तलाश जारी है। इससे पहले भी मार्च में कुछ संगठनों ने महाराष्ट्र में औरंगजेब की जगह औरंगजेब की फोटो जलाई थी। अब आपको बताते हैं कि बहादुर शाह जफर कौन थे और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनका क्या योगदान था?
स्वतंत्रता सेनानी, कवि और बेटों के बलिदान के लिए जाने जाते हैं बहादुर शाह जफर
बहादुर शाह ज़फ़र भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अग्रणी चेहरा थे। वह मुगल साम्राज्य के अंतिम सम्राट थे। उनका जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था। अपने पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद उन्हें 1837 में मुगल सम्राट बनाया गया था। यद्यपि तब तक देश में ब्रिटिश शासन अपने पैर पसार चुका था और दिल्ली की सत्ता पहले की अपेक्षा काफी कमजोर हो गई थी, लेकिन वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध डटे रहे। उन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
म्यांमार भेजा गया
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह में भारतीय सैनिकों ने उन्हें अपना नेता घोषित किया। इस विद्रोह में मंगल पांडे, नाना साहब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे। यद्यपि इस विद्रोह को ब्रिटिश सेनाओं ने दबा दिया तथा 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया, लेकिन बहादुर शाह जफर को हार के बाद इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) में निर्वासित कर दिया गया। जहां उन्हें यातनाएं दी गईं और मरने के लिए छोड़ दिया गया।
बच्चों का बलिदान
बहादुर शाह जफर से जुड़ा एक किस्सा आज भी लोगों को रुला देता है। कहा जाता है कि जब जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके बेटों के सिर एक थाली में रखकर उनके सामने ले आए। हालाँकि, ज़फर का अंग्रेजों को जवाब काफी चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि भारत के बेटे देश के लिए अपना सिर कुर्बान कर अपने पिता के पास इसी तरह आते हैं।
देश भर में कई सड़कों का नाम बहादुर शाह जफर के नाम पर रखा गया है। राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के लाहौर में एक सड़क और बांग्लादेश के पुराने ढाका शहर में उनके नाम पर एक पार्क भी है। 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने म्यांमार यात्रा के दौरान बहादुर शाह जफर की मजार पर पुष्प अर्पित किए थे।
जनता को गोलियों से भून दिया गया
अपनी शायरी के बल पर दिलों को छूने वाले बहादुर शाह जफर ने ब्रिटिश मेजर विलियम हडसन को करारा जवाब दिया था। दरअसल, हडसन ने जफर को चिढ़ाया था- ''दम में दम नहीं खैर आम जान की.. ऐ जफर, ठंडी हुई अब तेग हिंदुस्तान की...'' इसका जवाब देते हुए जफर ने कहा- गाजियों में बू रहेगी जब तक ईमान की.. तख्त-ए-लंदन तक चलेगी तेग-ए-हिंदोस्तान की... जफर को ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने की कीमत चुकानी पड़ी। कहा जाता है कि उनके तीन बेटों और परपोतों को ब्रिटिश अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से गोली मार दी थी।