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वर्षों तक अनदेखी, जब पत्र काफी नहीं था, 2014 में सरकार बदलते ही पीएम मोदी ने दिया था महान विभूतियों को सम्मान

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (आईएएनएस)। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल की शुरुआत की, तो उन्होंने एक नई दिशा और ऊर्जा के साथ शासन का तरीका बदलने की ठानी। उन पहले महीनों में ही यह स्पष्ट हो गया कि मोदी सरकार न सिर्फ नीतियों में बदलाव लाएगी, बल्कि देश की उन महान विभूतियों को भी सम्मानित करेगी, जिनका योगदान भारत की प्रगति में कभी न कभी अहम रहा था, लेकिन जिन्हें अब तक सही सम्मान नहीं मिला था। 2014 के अंत में, 24 दिसंबर को मोदी सरकार ने इस दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया।
वर्षों तक अनदेखी, जब पत्र काफी नहीं था, 2014 में सरकार बदलते ही पीएम मोदी ने दिया था महान विभूतियों को सम्मान

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (आईएएनएस)। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल की शुरुआत की, तो उन्होंने एक नई दिशा और ऊर्जा के साथ शासन का तरीका बदलने की ठानी। उन पहले महीनों में ही यह स्पष्ट हो गया कि मोदी सरकार न सिर्फ नीतियों में बदलाव लाएगी, बल्कि देश की उन महान विभूतियों को भी सम्मानित करेगी, जिनका योगदान भारत की प्रगति में कभी न कभी अहम रहा था, लेकिन जिन्हें अब तक सही सम्मान नहीं मिला था। 2014 के अंत में, 24 दिसंबर को मोदी सरकार ने इस दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया।

इस दिन, देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय का नाम चुना गया, जिनका योगदान भारतीय राजनीति और समाज के इतिहास में अमूल्य था। दोनों हस्तियों के लिए यह एक खास दिन था, क्योंकि अगले ही दिन अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन था और मदन मोहन मालवीय की जयंती।

संयोगवश, वाजपेयी और मालवीय दोनों का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। वाजपेयी का 1924 में और मालवीय का 1861 में जन्म हुआ।

अटल बिहारी वाजपेयी सभी के लिए बहुत मायने रखते हैं। वे एक मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत और दिग्गजों में भी दिग्गज थे। वाजपेयी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने एक स्थिर और सफल गठबंधन का नेतृत्व किया। उन्होंने इस मिथक को गलत साबित किया कि गठबंधन सरकारें स्थिरता नहीं दे सकतीं। उन्होंने न सिर्फ 'गठबंधन धर्म' का प्रचार किया बल्कि उसका पालन भी किया।

ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी को यह सम्मान अलग-अलग राजनीतिक दलों के लोगों और आम जनता की वर्षों की मांग के बाद मिल रहा था। यह मांग कांग्रेस की सरकार में भी जोर पकड़ रही थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी पूरे कांग्रेस कार्यकाल में इस सम्मान से अछूते रहे।

मनमोहन सिंह मई 2004 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे। लगभग चार साल के बाद 5 जनवरी 2008 को लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने आग्रह किया था कि गणतंत्र दिवस 2008 पर भारतीय नागरिकों को दिए जाने वाले अवॉर्ड्स में से अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए। लेटर में 10 कारण बताए गए थे कि वाजपेयी यह सम्मान पाने के लिए सबसे सही क्यों थे।

लालकृष्ण आडवाणी की नजर में अटल बिहारी वाजपेयी देश के सबसे शानदार प्रधानमंत्री थे। आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में 'प्रधानमंत्रियों की बैलेंस शीट' में लिखा था, "मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि मैं अपने पूरे राजनीतिक करियर में अटलजी का करीबी साथी रहा। मुझे यह भी यकीन है कि अगर कोई राजनीतिक विशेषज्ञ उनके छह साल के राज को बिना किसी भेदभाव के देखे, तो वह आसानी से मानेगा कि 1998 से 2004 तक का एनडीए राज कामयाबियों से भरा था और असल में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे नेगेटिव कहा जा सके।"

उस समय मनमोहन सिंह ने आडवाणी का पत्र मिलने की बात तुरंत मान ली थी और उन्हें इस बारे में सूचित भी किया था, लेकिन मांग उठाने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम 'भारत रत्न' के लिए नहीं भेजा गया। हालांकि, 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार जा चुकी थी, क्योंकि जनादेश नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को मिला था।

प्रधानमंत्री मोदी के शपथ लेने के कुछ महीनों बाद ही 'भारत रत्न' के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नाम की घोषणा की गई। तब देश के प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी खुशी जाहिर की थी। उन्होंने लिखा था, "अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना बहुत खुशी की बात है।"

इसी तरह, पंडित मदन मोहन मालवीय को एक महान विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने लोगों में राष्ट्रीय चेतना की चिंगारी जलाई। मदन मोहन मालवीय का जीवन एक आदर्श, त्याग और सेवा की मिसाल है। उनका संपूर्ण जीवन भारतीय समाज के उत्थान, शिक्षा की ज्योति जलाने और स्वतंत्रता की अलख जगाने में बीता। उनकी विरासत हमेशा हमें प्रेरित करती रहेगी और भारत को एक बेहतर समाज बनाने के लिए मार्गदर्शन देती रहेगी।

मालवीय ने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की। उनका मानना था कि शिक्षा के बिना समाज का विकास संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने एक ऐसा संस्थान स्थापित किया जो भारतीय संस्कृति और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का प्रतीक बने। बीएचयू के माध्यम से मालवीय ने भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी, जहां से लाखों विद्यार्थियों ने उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया।

2014 से पहले की सरकारों में मदन मोहन मालवीय को भी वह सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वे असल हकदार थे। वे 1909, 1918, 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इस तरह वे स्वतंत्रता-पूर्व भारत में चार बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। बावजूद इसके कांग्रेस की सरकारों ने कई दशक तक भारत की सत्ता पर काबिज होने पर भी उन्हें 'भारत रत्न' सम्मान नहीं दिया।

राजनीतिक जीवन में कांग्रेसी रहे मदन मोहन मालवीय को आखिरकार 2014 में भाजपा सरकार ने 'भारत रत्न' (मरणोपरांत) देकर उनके योगदान को सम्मानित किया।

--आईएएनएस

डीसीएच/जीकेटी

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