वंदे मातरम सिर्फ गीत नहीं, बल्कि एक मंत्र है: संबित पात्रा
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में लोकसभा में चल रही ‘विशेष चर्चा’ के दौरान ओडिशा के पुरी से भाजपा सांसद संबित पात्रा ने सदन को संबोधित किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि सही मायने में देखा जाए तो जब से भारत आजाद हुआ, आज वंदे मातरम का उत्सव सदन में मन रहा है, क्योंकि जब शताब्दी वर्ष हुआ था, उस समय आपातकाल की स्थिति थी।
भाजपा सांसद ने कहा कि आज आजाद भारत के सदन में वंदे भारत का उत्सव मनाया जा रहा है। वंदे मातरम एक गीत नहीं मंत्र है। कई बार दो शब्द पर्यायवाची लगते हैं, लेकिन होते नहीं हैं। क्योंकि देश और राष्ट्र एक शब्द नहीं है। जो देश है, वह राष्ट्र नहीं है।
उन्होंने कहा कि देश की सीमाएं होती हैं, देश की एक नीति होती है। देश में सरकार होती है, देश की अर्थनीति होती है। देश में नदियां होती हैं। देश का कोष होता है, जबकि राष्ट्र आत्मा होती है, राष्ट्र की सीमाएं नहीं होती, राष्ट्र विचार में होता है। उदाहरण के तौर पर अगर देश कहा जाए, तो गंगा मात्र एक नदी है, जो सागर में जाकर मिल जाती है। लेकिन जब हम कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, तब गंगा नदी नहीं रहती, गंगा मैया बन जाती है।
भाजपा सांसद ने कहा कि यदि देश कहा जाए तो हिमालय केवल एक पर्वत श्रंखला होती है, लेकिन अगर राष्ट्र कहा जाए तो हिमालय भारतवर्ष में वह है, जहां कैलाश में शिव शंकर विराजमान हैं, यह एक विचार है। इसी तरह गीत और मंत्र में भेद है। गीत शरीर को स्पर्श करता है। गीत कर्णप्रिय होता है, लेकिन मंत्र आत्मा को स्पर्श करता है। मंत्र अनंत होता है, और मंत्र अक्षय होता है, जैसे वंदे मातरम आत्मा को स्पर्श करता है।
उन्होंने सदन में मूल स्वरूप में वंदे मातरम वाले आनंदमठ का एक पन्ना भी पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा सुभाष चंद्र बोस ने नेहरू को चिट्ठी इसलिए लिखी थी, क्योंकि 26 अक्टूबर 1937 को कोलकाता में होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की जो बैठक होने वाली थी। उससे पहले 9 अक्टूबर को उसका एजेंडा आया था। एजेंडे में लिखा था कि सीडब्ल्यूसी यह तय करेगी कि वंदे मातरम का क्या करना है, रखना है या विसर्जित करना है। उन्होंने कहा कि इस बात पर सुभाष चंद्र बोस तड़प उठे थे।
--आईएएनएस
एमएस/डीकेपी

