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ऑपरेशन तो किया मगर पेट के अंदर छोड़ दी ऐसी चीज, जिससे महिला की हो गई मौत… अब लगा 1200000 का जुर्माना

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डॉक्टरों को जहां एक ओर भगवान का दर्जा दिया जाता है, वहीं कई बार उनकी लापरवाही किसी मरीज की जान पर भारी पड़ जाती है। ऐसा ही एक गंभीर मामला गाजीपुर जिले के दिलदारनगर क्षेत्र से सामने आया है, जहां एक गर्भवती महिला की मौत के बाद अस्पताल की लापरवाही उजागर हुई है। इस मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने कड़ा रुख अपनाते हुए अस्पताल प्रबंधन पर ₹12 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

क्या है पूरा मामला?

साल 2017 में राम आशीष नामक व्यक्ति की पत्नी को गंभीर अवस्था में दिलदारनगर स्थित कादरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 27 मार्च 2017 को महिला का ऑपरेशन किया गया और उसने एक बेटी को जन्म दिया। हालांकि ऑपरेशन के कुछ समय बाद ही महिला की हालत बिगड़ने लगी। अस्पताल की ओर से उसे शम्मे हुसैनी अस्पताल, हमीद सेतु के पास रेफर कर दिया गया।

शम्मे हुसैनी अस्पताल में जब डॉक्टर संजीव कुमार ने महिला की जांच की, तो एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ। जांच में पता चला कि कादरी अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑपरेशन के दौरान लापरवाही बरतते हुए महिला के पेट में खून सूखाने का माप (gauze piece) छोड़ दिया था। हालांकि इसे बाहर निकाल लिया गया, लेकिन तब तक संक्रमण फैल चुका था। इलाज के बावजूद कुछ दिनों बाद महिला की मौत हो गई।

पति की लड़ाई, एफआईआर और न्याय की जंग

पत्नी की मौत के बाद राम आशीष ने न्याय के लिए कई स्तरों पर शिकायतें दर्ज कराईं। उन्होंने सीएमओ, डीएम सहित अन्य उच्चाधिकारियों को लिखित रूप से शिकायत सौंपी। सीएमओ की ओर से कराई गई जांच में डॉक्टर मनोज सिंह की लापरवाही की पुष्टि हुई और उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई। कादरी अस्पताल का प्रबंधन उस समय डॉक्टर मनोज सिंह और प्रबंध निदेशक डॉक्टर एके तिवारी के हाथों में था। महिला की मौत के बाद पूरे अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए।

उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला

राम आशीष ने मामले को जिला उपभोक्ता फोरम में उठाया। आयोग के अध्यक्ष सुजीत श्रीवास्तव ने केस के साक्ष्यों का अवलोकन किया और दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह साफ तौर पर सामने आया कि ऑपरेशन के बाद संक्रमण के कारण महिला की मौत हुई थी। इस पुष्टि के बाद आयोग ने अस्पताल प्रबंधन को दोषी ठहराते हुए दो महीने के भीतर पीड़ित परिवार को ₹12 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया।

यह मामला एक बार फिर से यह सवाल खड़ा करता है कि आखिरकार मरीज की जान के साथ खिलवाड़ करने वालों को कब तक माफ किया जाएगा? जहां डॉक्टरों की एक छोटी सी चूक किसी की जान ले सकती है, वहीं ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई और जवाबदेही बेहद जरूरी है। इस निर्णय से उम्मीद की जा सकती है कि लापरवाह डॉक्टरों और अस्पतालों को सबक मिलेगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

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