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वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हुई पहली याचिका, वीडियो में देखें कांग्रेस सांसद ने भी याचिका लगाई

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वक्फ संशोधन बिल 2025 को लेकर देश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। शुक्रवार को इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहली याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने दाखिल की है। याचिका में उन्होंने बिल को संविधान विरोधी बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।

बता दें कि वक्फ संशोधन विधेयक 2 और 3 अप्रैल को लोकसभा और राज्यसभा में लाया गया था, जहां इस पर कई घंटों तक गहन चर्चा हुई। इसके बाद दोनों सदनों से यह बिल पास हो गया और अब इसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधेयक को एक "बड़ा सुधार" बताते हुए इसकी सराहना की है। उन्होंने कहा कि यह बिल ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता) बढ़ाने, वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और गरीब तथा पसमांदा मुस्लिम समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाएगा। सरकार का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।

हालांकि, विपक्ष और अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ नेताओं का कहना है कि इस बिल के ज़रिए सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म कर रही है और यह समुदाय के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप है। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने याचिका में कहा है कि यह बिल न केवल धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि अल्पसंख्यकों की संस्थागत स्वतंत्रता पर भी खतरा पैदा करता है।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस बिल पर रोक लगाई जाए और इसकी संवैधानिक वैधता की समीक्षा की जाए। साथ ही उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया है कि जब तक यह मामला विचाराधीन है, तब तक इस कानून को लागू न किया जाए।

याचिका दाखिल होने के बाद यह मामला राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि यह कदम धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण बढ़ाने की एक सोची-समझी रणनीति है। वहीं, भाजपा नेताओं का कहना है कि विपक्ष जानबूझकर भ्रम फैला रहा है और यह कानून पूरी तरह संविधान सम्मत है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है और क्या इस बिल को लेकर कानूनी प्रक्रिया में कोई बदलाव आता है।

देशभर के वक्फ बोर्ड और मुस्लिम समुदाय इस फैसले पर नज़र टिकाए हुए हैं, क्योंकि यह विधेयक आने वाले समय में धार्मिक संपत्तियों के संचालन के तौर-तरीकों को काफी हद तक बदल सकता है।

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