'मेरे होते हुए किसी और से बात...', पत्नी पर छुरे से 19 वार कर कत्ल; पति ने चिल्ला-चिल्लाकर कहे ये शब्द
बागपत की घटना केवल एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह सामाजिक रिश्तों के भीतर पल रहे अविश्वास, गुस्से और भावनात्मक असंतुलन की दर्दनाक परिणति है। ठाकुर द्वारा मोहल्ले में हुई यह वारदात चीख-चीखकर बता रही है कि जब संवाद टूटता है, तो रिश्ता मौत में बदल सकता है।
प्रशांत और नेहा की प्रेम कहानी एक आम शहर की गलियों में शुरू हुई थी—दफ्तरों के पास, कामकाजी जीवन के बीच। दोनों अलग-अलग जातियों से थे, लेकिन प्रेम ने दीवारें तोड़ दीं। घरवालों की नाराजगी के बावजूद, उन्होंने छह साल पहले प्रेम विवाह किया और एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन प्रेम, जब सहनशीलता और समझ से खाली हो, तो धीरे-धीरे घुटने लगता है।
प्रशांत, जिसे इलाके में 'सांप' के नाम से जाना जाता था, एक ओला कैब ड्राइवर था। उसे शक था कि उसकी पत्नी नेहा के किसी से 'अनैतिक संबंध' हैं। उसने उसका व्हाट्सएप हैक किया, उसके मैसेज पढ़े और फिर मन में भरा शक गुस्से की आग बन गया। शायद वह अंदर से टूटा हुआ था, और यह टूटन चुपचाप किसी तूफान की तरह पल रही थी।
घटना वाले दिन वह छुरा लेकर सीधे नेहा के घर पहुंचा। वहां उसका चार साल का बेटा नहीं था, लेकिन दिव्यांग ससुर मौजूद थे। उसने 19 बार चाकू से वार किए और नेहा का गला रेत दिया। इसके बाद उसने खुद अपने परिजनों को फोन कर कबूल किया: "जिस दिन नेहा से शादी की थी, उसी दिन कहा था, अगर गलत निकली तो मार दूंगा। आज मार दिया।"
क्या यह अपराध सिर्फ शक की वजह से हुआ? या यह उस मानसिक तनाव का परिणाम था, जिसे हम अक्सर 'घरेलू झगड़ा' कहकर अनदेखा कर देते हैं?
नेहा की मां रंजीता बताती हैं कि बेटी को लगातार धमकियां मिल रही थीं, उसने पुलिस से शिकायत भी की थी। लेकिन यह शिकायत एक दर्ज रिपोर्ट बनकर ही रह गई। प्रशांत पुलिस के सामने नहीं आया और धीरे-धीरे उसका गुस्सा हत्या में बदल गया।
इस दर्दनाक कहानी का सबसे मासूम किरदार था—आर्यन, जो स्कूल से लौटकर अपनी मां की लाश और अपने पिता की गिरफ्तारी की खबर सुनता है। उसका संसार, जो स्कूल की घंटी तक ठीक था, अब टूट चुका है।
इस घटना से कई सवाल खड़े होते हैं:
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क्या हमारे समाज में 'प्रेम विवाह' के बाद रिश्तों को निभाने के लिए पर्याप्त सामाजिक और मानसिक समर्थन होता है?
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क्या शक, संवाद की कमी और नशे की आदतें एक इंसान को हिंसक बना सकती हैं?
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और सबसे अहम, क्या कानून और समाज ऐसे लोगों के मानसिक हालात को समय रहते पहचानकर रोकथाम कर सकता है?
यह कहानी सिर्फ नेहा और प्रशांत की नहीं है। यह उन हजारों लोगों की कहानी है, जो रिश्तों में फंसी चुप्पियों से लड़ रहे हैं, जो मदद नहीं मांगते और अंततः या तो खुद को खत्म कर लेते हैं या किसी और को।

