गला घोंटा, सब्जी वाले चाकू से अंगों को काटा, खुद को भगवान मानने वाले कातिल के खौफ की कहानी जानकर हो जाएंगे हैरान

दिल्ली पुलिस को 2006 से 2007 के बीच एक के बाद एक सिर कटी लाशें मिलती रहीं, जिनके साथ पुलिस को चिठ्ठियां मिलती थीं – एक सीधी चुनौती: "पकड़ सको तो पकड़ लो!" इस चुनौती ने दिल्ली पुलिस को हिला कर रख दिया। ये हत्या किसी आम अपराधी की करतूत नहीं थीं, बल्कि एक ऐसे सीरियल किलर की दास्तां थीं जो खुद को भगवान समझता था। उसका नाम था — चंद्रकांत झा, जिसे आज लोग The Butcher of Delhi के नाम से जानते हैं।
पहला संकेत: फोन कॉल और सिर कटी लाश
सबसे पहला केस हरि नगर थाने में एक अनजान फोन कॉल से शुरू हुआ। फोन करने वाले ने बताया कि थाने के बाहर एक कंटेनर में लाश है। हेड कांस्टेबल मौके पर पहुंचे, तो सच में एक कंटेनर मिला – कसकर बंधा हुआ। जैसे ही उसे खोला गया, सामने आई एक सिर कटी लाश और एक रहस्यमयी चिट्ठी जिस पर लिखा था: "C.C."। शुरुआत में पुलिस को यह एक आम हत्या लगी, लेकिन जब कुछ दिन बाद एक अखबार ने चिट्ठी छापी, जिसमें कातिल ने पुलिस को खुली चुनौती दी थी, तब यह केस एक हाई-प्रोफाइल सीरियल मर्डर केस में बदल गया।
अपराधी का संदेश: गुस्सा, बदला और चैलेंज
हत्या के बाद मिली चिट्ठियों में हत्यारे ने पुलिस के खिलाफ अपनी नफरत जाहिर की और यह भी लिखा कि तिहाड़ जेल में एक हेड कांस्टेबल ने उसे टॉर्चर किया था। उसने यह भी लिखा कि उसका मकसद "सिस्टम से बदला लेना" है।
एक के बाद एक लाशें, एक जैसा पैटर्न
25 अप्रैल 2007 को पुलिस को एक और कंटेनर मिला – इस बार तिहाड़ जेल के पास। लाश के हाथ, पैर, सिर और प्राइवेट पार्ट गायब थे। बाद में जब आरोपी पकड़ा गया तो उसने बताया कि वह खुद आम लोगों की मदद से कंटेनर खोलवाता था। 18 मई 2007 को तीसरी लाश मिली – फिर वही सिर कटा शरीर, फिर वही चिट्ठी। चंद्रकांत झा ने जांच में बताया कि उसने अपने शिकारों के शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों – शालीमार बाग, तीस हजारी कोर्ट, यमुना और किशनगंज नाले में फेंके।
चंद्रकांत झा की गिरफ्तारी
पुलिस जांच में सुराग उन्हें आजादपुर मंडी तक ले गया, जहां एक डॉक्टर ने उसकी पहचान बताई। डॉक्टर ने कहा कि उसने चंद्रकांत की पांच बेटियों की डिलीवरी करवाई थी। इस सुराग के आधार पर सुंदर सिंह यादव की टीम ने आरोपी को गिरफ्तार किया।
कबूलनामा और हत्या की वजह
पूछताछ में चंद्रकांत ने बताया कि उसने 1988 में पहला कत्ल किया था। कारण था पुलिस और समाज से मिला अन्याय। उसका तरीका दिल दहला देने वाला था – पहले दोस्ती करता, फिर शिकार को भाई की तरह अपनाता और फिर मौका देखकर उसका गला घोंट देता। बाद में शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर अलग-अलग इलाकों में फेंक देता।
साइकोलॉजिकल विश्लेषण: खुद को भगवान मानता था
क्रिमिनोलॉजिस्ट्स के मुताबिक चंद्रकांत को "गॉड कॉम्प्लेक्स" था – वह खुद को न्याय देने वाला भगवान मानता था। उसने अपने वकील से कानून की किताबें लेकर खुद अपना केस भी तैयार किया। उसके पास से एक कैमरा भी मिला जिसमें वो अपने शिकारों की तस्वीरें लेता था।
सजा और अब का हाल
फरवरी 2013 में उसे तीन हत्याओं के जुर्म में दो मौत की सजा और एक उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 2016 में उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया और 2022 में उसकी पैरोल याचिका खारिज कर दी गई। फिलहाल वह तिहाड़ जेल में बंद है। 'द बुट्चर ऑफ दिल्ली' की यह कहानी न सिर्फ एक सीरियल किलर की दास्तां है, बल्कि सिस्टम, समाज और पुलिस के उस पहलू की भी परछाई है, जहां असंतोष का जन्म खूनखराबे में तब्दील हो जाता है।