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सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग: लंबे समय तक बैठे रहने के खतरों पर नए शोध

नई दिल्ली, 5 नवंबर (आईएएनएस)। आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम जितना तरक्की कर रहे हैं, उतना ही आरामतलब भी हो गए हैं। चल कर काम करने की बजाए काम का अधिकतर हिस्सा स्क्रीन के सामने पूरा होता है, यात्रा गाड़ियों में, और आराम कुर्सियों पर किया जा रहा है। नतीजा यह कि 'लंबे समय तक बैठे रहना' आज एक नई स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में कई शोध हुए थे, जिन्होंने यह साबित किया है कि लंबे समय तक बैठना सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि धीरे-धीरे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदेह बनता जा रहा है जितना धूम्रपान। इसी कारण वैज्ञानिकों ने इसे नाम दिया है 'सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग।'
सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग: लंबे समय तक बैठे रहने के खतरों पर नए शोध

नई दिल्ली, 5 नवंबर (आईएएनएस)। आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम जितना तरक्की कर रहे हैं, उतना ही आरामतलब भी हो गए हैं। चल कर काम करने की बजाए काम का अधिकतर हिस्सा स्क्रीन के सामने पूरा होता है, यात्रा गाड़ियों में, और आराम कुर्सियों पर किया जा रहा है। नतीजा यह कि 'लंबे समय तक बैठे रहना' आज एक नई स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में कई शोध हुए थे, जिन्होंने यह साबित किया है कि लंबे समय तक बैठना सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि धीरे-धीरे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदेह बनता जा रहा है जितना धूम्रपान। इसी कारण वैज्ञानिकों ने इसे नाम दिया है 'सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग।'

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययन बताते हैं कि जो लोग दिन में 8 घंटे से अधिक समय बैठकर बिताते हैं, उनमें हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। बैठने से मेटाबॉलिज्म धीमा होता है, रक्त संचार बाधित होता है और मांसपेशियां निष्क्रिय रहने लगती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार बैठने से शरीर का इन्सुलिन स्तर भी असंतुलित होता है, जिससे शुगर लेवल और वजन दोनों पर असर पड़ता है।

2023 में प्रकाशित एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल रिपोर्ट में पाया गया कि लंबे समय तक बैठने वाले लोगों में समय से पहले मृत्यु का खतरा उन लोगों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होता है जो दिन में नियमित रूप से चलते या खड़े रहते हैं। खास बात यह भी है कि दिन में एक घंटा जिम जाने से यह नुकसान पूरी तरह खत्म नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर को हर कुछ घंटों में हलचल की जरूरत होती है, न कि दिन के किसी एक हिस्से में व्यायाम की।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चेतावनी दे चुका है कि दुनिया भर में हर साल लगभग 50 लाख मौतें 'शारीरिक निष्क्रियता' से जुड़ी हैं, जिनमें सबसे बड़ा योगदान लंबे समय तक बैठने की आदत का है। यह निष्क्रियता अब केवल बुज़ुर्गों या ऑफिस कर्मचारियों तक सीमित नहीं रही बल्कि बच्चे और किशोर भी ऑनलाइन क्लासेस और गेमिंग के कारण इसी खतरे में आ गए हैं।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि हर 30 से 40 मिनट में उठकर 3–5 मिनट टहलना, सीढ़ियां चढ़ना या हल्की स्ट्रेचिंग करना शरीर के लिए बहुत जरूरी है। इसके अलावा, 'स्टैंडिंग डेस्क' और 'एक्टिव चेयर' जैसी नई कार्यशैली की तकनीकें भी तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

लंबे समय तक बैठे रहना किसी एक दिन का नुकसान नहीं दिखाता, लेकिन धीरे-धीरे यह शरीर की हर प्रणाली पर असर डालता है। जैसे धूम्रपान धीरे-धीरे फेफड़ों को कमजोर करता है, वैसे ही निष्क्रियता पूरे शरीर की कार्यप्रणाली को धीमा कर देती है। आज की दुनिया में जहां 'वर्क फ्रॉम डेस्क' आम हो चला है वहां यह समझना और भी जरूरी है कि चलना, खड़ा रहना और सक्रिय रहना कोई शौक नहीं बल्कि एक जरूरत है।

--आईएएनएस

केआर/

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