श्री दुर्गा नागेश्वर स्वामी मंदिर: सर्प दोष निवारण का प्रमुख तीर्थ, ‘दक्षिण का काशी’
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। पूरे भारत में काशी को मोक्ष का स्थान कहा गया है और वहां काशी विश्वनाथ के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं, लेकिन दक्षिण भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसे दूसरा काशी कहा जाता है।
काशी और आंध्र प्रदेश का एक गांव, पेडकल्लेपल्ली, आध्यात्मिक और भौगोलिक दृष्टि से एक जैसे हैं, और यही वजह है कि पेडकल्लेपल्ली में बने शिव मंदिर की तुलना काशी के विश्वनाथ शिव मंदिर से होती है।
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पास बने पुराने गांव पेडाकल्लेपल्ली में श्री दुर्गा नागेश्वर स्वामी मंदिर स्थापित है। इस मंदिर को पेडाकल्लेपल्ली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में भगवान शिव नागेश्वर स्वामी के रूप में विराजमान हैं और मां पार्वती को मां दुर्गा के रूप में विराजित किया गया है। ये मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती के प्रेम और तप का प्रतीक है।
मंदिर को पुराने समय से ही दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पेडाकल्लेपल्ली में कृष्णा नदी उत्तर की ओर बहती है जैसे गंगा नदी बनारस में उत्तर की ओर बहती है। दूसरा, काशी में क्षेत्रपालक भगवान बिंदु माधव स्वामी हैं, जबकि पेडाकल्लेपल्ली में क्षेत्रपालक के रूप में भगवान वेणुगोपाल स्वामी मौजूद हैं। माना जाता है कि वेणुगोपाल स्वामी को पेडाकल्लेपल्ली का क्षेत्रपाल खुद महर्षि विश्वामित्र ने बनाया था।
मंदिर की दीवार से लेकर गोपुरुम तक कई अलग राजाओं और शैलियों की झलक देखने को मिलती है। 12वीं शताब्दी में काकतीय राजगुरु सोमशिवाचार्य ने निर्माण कार्य शुरू किया था, जिसके बाद 17वीं शताब्दी में श्री यारलागड्डा कोदंडा रमन्ना ने मंदिर का कुछ हिस्सा बनवाया और 1795 में मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े श्री यारलागड्डा नागेश्वर राव नायडू ने मंदिर के गोपुरम का निर्माण कराया। मंदिर पर काकतीय शैली का सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है। इस शैली में उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों की झलक देखने को मिलती है।
ग्रहों से जुड़ी समस्या या सर्प दोष से पीड़ित भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए जरूर आते हैं। माना जाता है कि मंदिर में भगवान शिव और मां दुर्गा के सामने अनुष्ठान करने से सारे ग्रह संतुलित हो जाते हैं। मंदिर में सर्प दोष निवारण के लिए अलग से अनुष्ठान कराया जाता है। मंदिर में एक कुंड भी बना है। माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण नागों के कर्कोटक यानी राजा ने किया था। सर्प दोष से बचने के लिए इसी कुंड में भक्त पवित्र स्नान करने आते हैं। शिवरात्रि और सावन के महीने में मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ लगती है।
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