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श्री अच्युतराय स्वामी मंदिर : पवनपुत्र हनुमान और सुग्रीव से जुड़े हैं तार, यहीं बसा था किष्किंधा

नई दिल्ली, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कर्नाटक में हम्पी में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिसके हर पत्थर में रहस्य छिपा है। मंदिर की बनावट और स्तभों की वास्तुकला पर आस्था और विजयनगर शैली का गहरा प्रभाव दिखता है। मंदिर की दीवारों पर चीन और मिस्र की कला भी देखने को मिलती है।
श्री अच्युतराय स्वामी मंदिर : पवनपुत्र हनुमान और सुग्रीव से जुड़े हैं तार, यहीं बसा था किष्किंधा

नई दिल्ली, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कर्नाटक में हम्पी में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिसके हर पत्थर में रहस्य छिपा है। मंदिर की बनावट और स्तभों की वास्तुकला पर आस्था और विजयनगर शैली का गहरा प्रभाव दिखता है। मंदिर की दीवारों पर चीन और मिस्र की कला भी देखने को मिलती है।

हम बात कर रहे हैं कर्नाटक के हम्पी के विजयनगर में बने श्री अच्युतराय स्वामी मंदिर की, जहां अब पूजा-पाठ नहीं होती है।

इस मंदिर को अपने इतिहास और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। मंदिर मातंग पहाड़ियों के बीच स्थित है, जहां आसपास की जनसंख्या बेहद कम है। यह शानदार मंदिर विजयनगर वास्तुकला शैली के मंदिरों को अपने सबसे अच्छे और सबसे बेहतरीन रूप में दिखाता है।

यह उन आखिरी शानदार मंदिरों में से एक था, जो विजयनगर साम्राज्य के पतन से पहले हम्पी के प्रसिद्ध शहर में बनाए गए थे। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण 1534 ईस्वी में हुआ था और बदलते समय के साथ आज मंदिर में अलग-अलग शताब्दी की झलक भी देखने को मिलती है।

यह मंदिर अपने बड़े गोपुरम और विशाल परिसर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर को कई स्तंभों के निर्माण के साथ बनाया गया है। स्तंभों पर सिर्फ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां ही नहीं, बल्कि चीन और मिस्र के व्यापारियों के हम्पी आने के सबूत भी हैं। मंदिर के स्तंभों पर व्यापार के कुछ चिन्ह या कलाकृति बनी हैं।

यह मंदिर भगवान विष्णु के तिरुवेंगलनाथ रूप को समर्पित है। मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं, लेकिन मूल देवता के रूप में काफी समय तक भगवान विष्णु को पूजा गया। आज यह मंदिर रखरखाव के अभाव में खंडहर बन चुका है और मंदिर में पूजा-पाठ भी बंद है। मंदिर को रामायण के पात्र सुग्रीव और बाली से जोड़कर देखा गया है।

माना जाता है कि अपने भाई बाली के प्रकोप से बचने के लिए सुग्रीव ने मातंग पहाड़ियों की शरण ली थी और यहीं पर उनकी मुलाकात हनुमान और लक्ष्मण से हुई थी। पुराणों में इस क्षेत्र को किष्किंधा भी कहा गया है, जो वानरों का क्षेत्र रहा था। बाली का इस क्षेत्र में आना वर्जित था, जिसकी वजह से सुग्रीव ने मातंग पहाड़ियों की शरण ली थी।

--आईएएनएस

पीएस/एबीएम

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