पहलगाम से जुड़ी अर्जी पर सुनवाई से एससी का इनकार, वीडियो याचिकाकर्ता को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। इस याचिका में मांग की गई थी कि हमले की निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच रिटायर्ड जजों की निगरानी में कराई जाए। कोर्ट ने इस याचिका पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने याचिकाकर्ता को तगड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह समय जनहित याचिका दाखिल करने का नहीं है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए स्पष्ट किया कि ऐसी याचिकाएं परिस्थितियों और समय के अनुसार सही समय पर दायर की जानी चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश किए गए तथ्यों की जांच करने की आवश्यकता नहीं है, और यह याचिका कोर्ट में लाने का कोई उचित कारण नहीं बनता।
क्या था पहलगाम आतंकी हमला?
जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में 2023 के अंत में एक आतंकी हमला हुआ था, जिसमें भारतीय सुरक्षा बलों के जवानों को निशाना बनाया गया था। इस हमले में कुछ जवान शहीद हो गए थे और कई अन्य घायल हुए थे। हमले के बाद सुरक्षा बलों द्वारा त्वरित कार्रवाई की गई और आतंकी समूह के कई सदस्य मारे गए थे। हालांकि, इस हमले ने पूरे देश में सुरक्षा के मुद्दे को फिर से उजागर किया और यह सवाल उठाया कि क्या सुरक्षा बलों को पर्याप्त जानकारी और संसाधन मिल रहे हैं, ताकि ऐसे हमलों को रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि इस मामले में अदालत का दखल असमय होगा। कोर्ट ने कहा कि यदि भविष्य में इस घटना से संबंधित कुछ और सबूत या नई जानकारी सामने आती है, तो संबंधित एजेंसियों को निर्देश देने का विचार किया जाएगा। अदालत का मानना था कि इस समय, जब जांच और कार्रवाई चल रही है, तब किसी भी तरह की हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
यह निर्णय याचिकाकर्ता के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है, जिन्होंने हमले की निष्पक्ष जांच के लिए उच्च न्यायिक निकायों की निगरानी में जांच कराए जाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि इस तरह के हमले के बाद पारदर्शिता और निष्पक्षता से जांच होनी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की गलती या लापरवाही का पर्दाफाश हो सके।
कोर्ट की राय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस तरह के मामलों में तत्काल कानूनी हस्तक्षेप उचित नहीं होता है, जब तक कि मामले में कोई ठोस साक्ष्य या नई जानकारी सामने न आए। कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को कभी-कभी ऐसी याचिकाओं से बचना चाहिए, जब मामला अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा हो और जांच चल रही हो।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में इस मामले से जुड़ी कोई नई स्थिति उत्पन्न होती है, तो याचिकाकर्ता फिर से अदालत से संपर्क कर सकते हैं।