'न साबित हुआ ना परखा गया' आखिर क्या है धर्मस्थल विवाद के पीछे छिपी असली ताकतें ?
धर्मस्थल, सदियों से श्री धर्मस्थल मंजनाथेश्वर मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह भूखों को भोजन कराने, कर्ज़ में डूबी परिवारों को मुक्त कराने, नशामुक्ति की मुहिम चलाने, ग्रामीण युवाओं को शिक्षा देने और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का मिशन बन चुका है। लेकिन आज, इस विरासत पर एक अनचाहा साया पड़ चुका है। एक सनसनीखेज़ आरोप—न तो साबित, न ही अदालत में परखा गया—सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलाकर, दशकों की सेवा और विश्वास को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया गया है। इस पूरे विवाद को देखने वाले कहते हैं कि यह मासूम ‘सच की तलाश’ नहीं, बल्कि कर्नाटक के सामाजिक और आध्यात्मिक ताने-बाने पर सोचा-समझा प्रहार है।
शक्ति और संसाधनों की जंग
धर्मस्थल मंदिर और इसकी सामाजिक शाखा श्री क्षेत्र धर्मस्थल ग्रामीण विकास परियोजना (SKDRDP) ने दशकों से कर्नाटक के लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। लेकिन, इसी कारण इसने उन ताकतवर नेटवर्क्स के मुनाफ़े पर सीधा वार किया है, जो पहले exploitation (शोषण) के जरिए फल-फूल रहे थे।
सूदखोर महाजनों पर वार
कर्नाटक के तटीय और ग्रामीण ज़िलों में कभी सूदखोर महाजन 60% से भी ज़्यादा ब्याज दर पर कर्ज़ देकर परिवारों को पीढ़ियों तक बंधुआ मज़दूरी में धकेलते थे। SKDRDP ने केवल 12% वार्षिक ब्याज पर माइक्रोफाइनेंस लोन देकर इस शोषण की जंजीर तोड़ी। हर वह परिवार जो कर्ज़ के इस जाल से निकला, वह महाजनों के लिए सीधा घाटा था—और यही वजह है कि आज इन नेटवर्क्स में धर्मस्थल के प्रति गहरी नाराज़गी है।
शराब माफ़िया को चुनौती
जना जागृति वेदिके नशामुक्ति अभियान के तहत धर्मस्थल ने अब तक 1.3 लाख से अधिक लोगों का पुनर्वास किया है और “नवजीवी समितियां” बनाकर गांव-गांव sobriety (नशामुक्ति) को बनाए रखा है। इसका असर सीधा शराब बिक्री पर पड़ा, जिससे बड़े शराब सिंडिकेट्स के मुनाफ़े पर चोट पहुंची—और उन्होंने भी मंदिर के खिलाफ़ दुश्मनी पाल ली।
धर्मांतरण नेटवर्क पर रोक
मंदिर का “धर्म” पर जोर और गरीब तबकों को मज़बूत बनाने वाली योजनाओं ने कई समुदायों को आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बना दिया। इस आत्मनिर्भरता ने आक्रामक धर्मांतरण अभियानों की जमीन खिसका दी, जिससे उनके फंडिंग और प्रभाव पर सीधा असर पड़ा।
विरोधियों का गठबंधन
विश्लेषकों का कहना है कि आज जो मीडिया नैरेटिव बन रहा है, वह केवल किसी संभावित “गलत काम” को उजागर करने के लिए नहीं है। यह एक सुविचारित छवि ध्वस्त करने का अभियान है, जिसमें तीन अलग-अलग हितधारी गुट एकजुट हो गए हैं—
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सूदखोर महाजन – जिनका मुनाफ़ा खत्म हुआ
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शराब माफिया – जिनकी बिक्री गिरी
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धर्मांतरण लॉबी – जिनकी पकड़ ढीली हुई
इन तीनों की साझा दिलचस्पी है—धर्मस्थल की विश्वसनीयता और प्रभाव को खत्म करना।
गरीबों के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्य
धर्मस्थल मंदिर केवल पूजा-पाठ का केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रयोगशाला है।
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सामूहिक विवाह समारोह – यहां बिना दहेज, बिना जातिगत भेदभाव, गरीब और निम्न वर्ग के जोड़ों के विवाह कराए जाते हैं, जिससे लाखों का आर्थिक बोझ बचता है।
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स्वास्थ्य सेवा – SDM मेडिकल ट्रस्ट के अस्पतालों में मुफ्त या सस्ती चिकित्सा दी जाती है।
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स्वयं सहायता समूह (SHG) – 60 लाख से अधिक सदस्य, जिनमें ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं हैं, को कृषि, छोटे व्यवसाय और शिक्षा के लिए लोन उपलब्ध।
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पेंशन योजनाएं – ₹110 करोड़ की राशि बुजुर्ग और असहाय लोगों में वितरित।
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डेयरी सहकारी समितियां – ₹37.85 करोड़ की मदद से किसानों की आय में वृद्धि।
इन पहलों ने न केवल गरीबी घटाई बल्कि सामाजिक असमानताओं को भी कम किया।
हमले का असली कारण ?
जो मॉडल 2.3 मिलियन से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाल चुका है, वही अब निशाने पर है। आलोचक कहते हैं, “धर्मस्थल पर आरोप उसके असफल होने की वजह से नहीं, बल्कि उसकी सफलता की वजह से लगाए जा रहे हैं।” क्योंकि यह संस्था उन लोगों के आर्थिक हितों पर चोट करती है, जो गरीबी, लत और धार्मिक विभाजन से फायदा उठाते हैं—और जिन्हें “गरीबी के सौदागर” कहा जा सकता है।
क्या यह न्याय के लिए संघर्ष है?
आज का सवाल यही है—क्या यह विवाद सचमुच न्याय के लिए है, या फिर एक सुव्यवस्थित रणनीति है जो एक प्राचीन और सम्मानित संस्था को गिराने के लिए रची गई है? धर्मस्थल की “धर्म की नगरी” न केवल एक मंदिर है, बल्कि यह ग्रामीण कर्नाटक की रीढ़ है। यदि ऐसे संस्थानों की साख गिरा दी गई, तो इसका असर केवल एक स्थान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह उन सभी समुदायों के लिए खतरे की घंटी होगी जो अब भी मानते हैं कि सत्य को तमाशे पर नहीं, बल्कि तर्क और प्रमाण पर आधारित होना चाहिए।

